पराक्रमी राजा || Hindi Moral Stories ||

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प्रताप नगर में एक बहुत ही पराक्रमी राजा रहता था। राजा का नाम प्रताप सेन था। राजा के पास एक हाथी भी था। हाथी का नाम ऐरावण था। ऐरावण हाथी बहुत ही समझदार, आज्ञाकारी और दयालु था। वैसे तो राजा के पास बहुत से हाथी घोड़े थे परंतु वह राजा प्रताप का चहीता था। उस राज्य के सभी निवासी भी ऐरावण को बहुत अच्छा मानते थे और उस से बहुत प्रसन्न रहते थे। राजा को भी ऐरावण पर बहुत गर्व था। वह उसको अपने बेटे के समान ही प्यार करते थे।ऐरावण सभी की बातें सुनता था और समझता भी था।

अब जिस जगह पर ऐरावण बंधा रहता था उस स्थान के बाहर चोरों ने अपनी झोपड़ी बना ली। अब क्या था कि चोर दिनभर तो लूट-पाट करते और लोगों से मार-पीट करते और रात को अपने अड्डे पर आकर अपनी बहादुरी का बखान करते थे। चोर अक्सर अपने अगले दिन की योजना भी बनाते थे कि कल किसे और कैसे लूटना है। उनकी बातें सुनकर लगता था कि वो सभी चोर बहुत खतरनाक थे। ऐरावण हाथी उन चोरों की बातें रोज सुनता रहता था। धीरे धीरे उन चोरों की बातों का असर ऐरावण हाथी पर होने लगा। ऐरावण को अब यह लगने लगा कि दूसरों पर अत्याचार करना ही असली वीरता है। मैं तो कुछ भी नही करता हूं और दिन भर यहां बंधा रहता हूं मैं वीर कैसे ही बनूंगा।

इसलिए, ऐरावण ने फैसला लिया कि अब वो भी चोरों की तरह ही लोगों पर अत्याचार करेगा। अब अगले ही दिन सबसे पहले ऐरावण ने अपने ही महावत पर वार कर दिया और महावत को इतना पटका इतना पटका की वह बेचारा वहीं पर मर गया।इतने अच्छे हाथी की ऐसी हरकत देखकर सारे लोग परेशान हो गए। ऐरावण की ऐसी हालत देख कर सबसे ज्यादा परेशान अगर कोई था तो वह था राजा प्रताप। ऐरावण अब किसी के भी काबू में नहीं आ रहा था। राजा भी ऐरावण का ये रूप देखकर चिंतित हो रहे थे। फिर राजा ने ऐरावण के लिए नए महावत को बुलाया। उस महावत को भी ऐरावण ने मार गिराया।धीरे धीरे इस तरह बिगड़ैल हाथी ने चार महावत कुचल दिए।महिला मुख के इस व्यवहार के पीछे क्या कारण था यह किसी को भी समझ नहीं आ रहा था।

जब राजा को कोई रास्ता नहीं सूझा, तो उसने एक बुद्धिमान वैद्य को ऐरावण के इलाज के लिए नियुक्त किया। राजा ने वैद्य जी से आग्रह किया कि जितनी जल्दी हो सके ऐरावण का इलाज करें, ताकि वो राज्य में तबाही का कारण न बन सके। वैद्य जी ने राजा की बात को गंभीरता से लिया और ऐरावण की कड़ी निगरानी शुरू की। अब वैध जी सुबह से लेकर रात तक ऐरावण के हो साथ रहने लगे। एक दिन वैध जी ने चोरों की बात सुन ली और वैद्य जी को पता चल गया कि ऐरावण में ये परिवर्तन चोरों के कारण हुआ है। वैद्य जी ने राजा को महिला मुख के व्यवहार में परिवर्तन का कारण बताया और कहा कि चोरों के अड्डे पर लगातार सत्संग का आयोजन कराया जाए, ताकि ऐरावण का व्यवहार पहले की तरह हो सके। राजा ने ऐसा ही किया।

अब चोरों के अड्डे को हटा कर वहां पर रोज सत्संग का आयोजन होने लगा। धीरे-धीरे ऐरावण की दिमागी हालत सुधरने लगी।कुछ ही दिनों में ऐरावण हाथी पहले जैसा उदार और दयालु बन गया। अपने पसंदीदा हाथी के ठीक हो जाने पर राजा प्रताप सेन बहुत प्रसन्न हुए। प्रताप सेन ने वैद्य जी की प्रशंसा अपनी सभा में की और उन्हें बहुत से उपहार भी प्रदान किए।”संगति अच्छी भी होती है और बुरी भी। संगति कोई भी हो उसका असर बहुत जल्दी और गहरा होता है। इसलिए, हमेशा अच्छे लोगोंं की संगत में रहना चाहिए और सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। बुरी संगत से अच्छा इंसान भी बुरा बन सकता है और अच्छी संगत से बुरा इंसान भी अच्छा बन सकता है। अपना स्वभाव सभी के लिए एकसमान रखें और अच्छा रखें।”

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