‘घिंगारू’ (Ghingaru) छोटी-छोटी सी कंटीली झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली फल है। यह सेब जैसा दिखाई देता है लेकिन यह आकार में बहुत छोटा होता है।
घिंगारु ( Ghingaru ) का वैज्ञानिक नाम
‘घिंगारु’ का वैज्ञानिक नाम “Pyracantha Crenulata” “पैइराकैंथ क्रेनुलारा” है। इसको हिमालयन रेड बेरी के नाम से भी जाना जाता है। बच्चे इसे छोटा सेब भी कहते हैं। इसके अतिरक्त इसे “हिमालयन-फायर-थोर्न”, “व्हाईट-थोर्न” तथा स्थानीय कुमाउनी भाषा में “घिंगारू ” या “घिंघारू ” के नाम से भी पहचाना जाता है।
‘घिंगारु’ (Ghingaru Fruit ) का स्वाद
‘घिंगारु’ (Ghingaru) स्वाद में हल्का खट्टा-मीठा होता है। बच्चे इसे बड़े चाव से खाते हैं। यह फल पाचन की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक फल है।
‘घिंगारू’ उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है। यह समुद्रतल से 3000 से 6500 फीट की ऊंचाई पर उगने वाला ‘रोजेसी’ (Rosaceae) कुल का बहुवर्षीय पौधा है।
‘घिंगारू’ का पौधा मध्यम आकार का होता है और इसकी शाखाएँ कांटेदार होती हैं। ‘घिंगारू’ के पत्ते गहरे रंग के होते हैं। यह पौधा 500 से 2700 मीटर की ऊँचाई तक सम्पूर्ण पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है। झाड़ीनुमा यह प्रजाति पूर्वी एशिया के पर्वतीय इलाकों में पाई जाती है| कुमाऊँ में इसके पौधे काफी मात्रा में पाए जाते है।
‘घिंगारू’ का पौधा 0 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तक के अलग-अलग तापमान में खुद को ढालने की क्षमता रखता है। ‘घिंगारु’ की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें सूखे को सहन करने की विशेष क्षमता होती हैै।
‘घिंगारू’ का पौधा आमतौर पर बंजर भूमि या पथरीली जमीन पर उगता है। यह पौधा प्राकृतिक रूप से खुली ढलानों, खेत की मौड़ों, घास के मैदानों, सड़कों के किनारे, झरनों व नदी नालों के किनारे तथा पहाड़ी घाटियों में भी पाया जाता है।
‘घिंगारू’ (Ghingaru) के पौधे में वर्ष में केवल एक बार ही फल आता है। प्रतिवर्ष मार्च से मई माह के बीच ‘घिंगारू’ में सफेद रंग के फूल आते हैं, यह फूल काफी सारे गुच्छों की शक्ल में आते है। यह फूल अपनी सुंदरता से मन को मोह लेते हैं।
धीरे धीरे यह फूल ‘घिंगारू’ के छोटे-छोटे फल के रूप में बदल जाते हैं। यह गुच्छों में लगे होते हैं। यह फल अगस्त-सितंबर में पकने पर नारंगी, गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। जो हल्के खट्टे, कसैले और स्वाद में मीठे होते हैं। ‘घिंगारू’ को चरवाहे, स्थानीय लोग, पक्षी, लंगूर और छोटे बच्चे बड़े चाव से खाते हैं।
कहा जाता है कि ‘घिंगारू’ के फूल से मधु मक्खियों द्वारा बनाया गया शहद, अपने आप में औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह शहद रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लिए शुगर के मरीजों के लिए खासा लाभदायक होता है।
‘घिंगारू’ की पत्तियों तथा फलों को उपयोग में लाया जाता है। पारम्परिक रूप से बीते बखत में स्थानीय लोग घिंगारू की चटनी बनाकर खाते थे। घिंगारू की पत्तियों को चारे के रूप में जानवरों को खिलाया जाता है।
‘घिंगारू’ (ghingaru) फल के अनेकों फायदे:-
- ‘घिंगारू’ में प्रोटीन की काफी मात्रा होती है।
- ‘घिंगारू’ के फल और पत्तियों में उच्च मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इन्फलामेट्री गुण होने के कारण यह हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह रोगों को ठीक करने में सहायक होता है।
- ‘घिंगारू’ फल, मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को सुचारू करने में सक्षम है, जिसके कारण यह स्मरण शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।
- ‘घिंगारू’ के फल में मौजूद बायोफ्लोनोइड्स के कारण यह हृदय में रक्त संचार को सुचारू करने में सहायक होता है, साथ ही यह रक्त वाहिकाओं को नष्ट होने से भी बचाता है।
- ‘घिंगारू’ के औषधीय गुण रक्तचाप को सुचारू करने के साथ-साथ रक्त से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं।
- इसके फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त का उपचार भी किया जाता है।
- फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है।
- ‘घिंगारू’ की पत्तियों से पहाडी हर्बल चाय भी बनायी जाती है।
- पर्वतीय क्षेत्र के जंगलो में पाया जाने वाला उपेक्षित ‘घिंगारू’ ह्रदय को स्वस्थ रखने में सक्षम है।
- ‘घिंगारू’ के फलों के रस में रक्तचाप और हाईपरटेंशन जैसी बीमारी को दूर करने की क्षमता है।
‘घिंगारू’ / Ghingaru के अन्य उपयोग:-
- इस वनस्पति से प्राप्त मजबूत लकड़ियों का इस्तेमाल लाठी या हॉकी स्टिक बनाने में किया जाता है।
- ‘घिंगारू’ की लकड़ी कृषि यंत्र बनाने में काम आती है इसकी लकड़ी काफी मजबूत मानी जाती है।
- ‘घिंगारू’ वनस्पति का उपयोग पारंपरिक रूप से दातून के रूप में किया जाता है जो कि दांतों को चमक और दांत दर्द में काफी लाभदायक साबित होता है।
- घिंगारू के हर हिस्से का औषधीय रूप से उपयोग किया जाता है। कुछ देशों में इसकी खेती भी की जाती है और आयुर्वेदिक औषधियों के रूप में इसका उपयोग किया जाता हैै।
- इसकी पत्तियों का रंग बहुत गहरा होता है, जिसके कारण इसे कई देशों में सजावटी पौधे के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
- वन्य पशुओं से फसलों की रक्षा के लिए ‘घिंगारू’ झाड़ी का उपयोग खेतों में बाड़ के रूप में किया जाता है क्योंकि जानवरों के लिए इसकी कंटीली झाड़ियों की बाड़ को पार करना मुश्किल होता है।
- इसके फलों के जूस में रक्तवर्धक गुण पाये जाते हैं। इन्ही औषधीय गुणों के कारण “रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान” (Defence Institute of bioenergy Research field station, Pithoagarh) द्वारा ‘घिंगारू’ के फूल के रस से ’हृदय अमृत’ नामक औषधि बनाई गयी है।
- एक्जिमा के उपचार के लिए भी ‘घिंगारू’ से तैयार टॉनिक का प्रयोग किया जाता है।
- ‘घिंगारू’ (Ghingaru) के पौधे में विद्यमान औषधीय गुणों तथा प्राकृतिक रूप से बहुतायत मात्रा में मिलने के कारण, उत्तराखण्ड के कुछ स्वयं सेवी संगठनों द्वारा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर ‘घिंगारू’ के फलों से गुणकारी उत्पाद बनाने की ओर शोध किया जा रहा है।
- पहाड़ की महिलाएं ‘घिंगारू’ की लकड़ी को काट कर सुखा के खाना बनाने के काम में भी लाती हैं।
“पहाड़ आने वाले पर्यटकों को खूब भाता है ‘घिंगारू’ (Ghingaru) का स्वाद”- उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों नैनीताल, मुक्तेश्वर, धारी, धानाचूली, अल्मोड़ा, रानीखेत, पिथौरागढ़, चम्पावत आदि स्थानों में घूमने आने वाले पर्यटक बरसात के सीजन में मुफ्त में मिलने वाले ‘घिंगारू’ (Ghingaru) के फल का खूब स्वाद लेते हुये दिखाई देते हैं।
उन्हें इसका स्वाद काफी भाता है। कई पर्यटक तो अपने घर के लिए भी ‘घिंगारू’ ले जाने के लिए स्थानीय लोगों से डिमांड करते हैं और यह वैसे भी बड़ी आसानी से हर जगह मिल जाता है।
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