भागीरथी नदी की यात्रा: गंगा के उद्गम, हिमालय से भारत के मैदानों तक का सफर
Bhagirathi river भागीरथी नदी उत्तराखंड की प्रमुख नदियों में से एक नदी है। भागीरथी नदी ही अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। भागीरथी को ‘किरात नदी’ के नाम से भी जाना जाता है। भागीरथी का उद्गम स्थल उत्तराखंड में ही स्थित है। इसका मुख्य ग्लेशियर गंगोत्री ग्लेशियर है जो कि उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। गंगोत्री ग्लेशियर लगभग 30 किलो मीटर लंबा है और साथ ही गंगोत्री ग्लेशियर भारत का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। भागीरथी नदी लगभग 205 किलो मीटर बहने के बाद देवप्रयाग में पहुंचती है और वहां पर अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है जिसके पश्चात वह गंगा कहलाती है।
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Origin of Bhagirathi river
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। कहते हैं की इसी दिन मां गंगा यानी गंगा नदी पहली बार धरती पर आई थी। गंगा नदी को धरती पर लाने वाला अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के राजा, राजा भगीरथ थे। उनके ही कठिन प्रयासों की वजह से ही गंगा नदी इस धरती पर आई। इसीलिए गंगा को भागीरथी भी कहते हैं क्योंकि राजा भगीरथ द्वारा ही उन्हें यहां लाया गया।
“राजा भगीरथ गंगा नदी को धरती पर क्यों लाए थे उसकी कहानी यह है” Bhagirathi river story
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा नदी को धरती पर लाने के प्रयास किए। दरअसल पहले के समय में सगर नाम के एक बहुत ही तेजस्वी और पराक्रमी राजा थे। उनका विवाह दो रानियों से हुआ था एक का नाम था सुमति तथा दूसरी का नाम था केशिनी। सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ तथा केशिनी के गर्भ से एक पुत्र हुआ जिसका नाम असमंजस पड़ा।
एक समय की बात है जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। उसके पश्चात इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा घोड़े को तपस्वी कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब राजा सगर को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने साठ हज़ार पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों ने हर तरफ घोड़े को ढूंढा आखिरकार उन्हें कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा मिल गया। उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे इधर सगर के पुत्रों ने क्रोध में आकर आश्रम पर हमला कर दिया, जिससे कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई। वे क्रोधित हो गए, क्रोध से उनकी आंखें पूरी लाल हो गई। कपिल मुनि का ध्यान बीच में ही भंग हो गया था तो उनकी आंखों से तेज अग्नि निकली जिस से की सगर के साठ हजार पुत्र जल कर भस्म हो गए। कई समय तक उन साठ हजार पुत्रों की कोई खबर नहीं आई अब राजा चिंतित हो गए। सगर का दूसरा बेटा असमंजस था परंतु वह बहुत अलग रहता था उसका कुछ मानसिक संतुलन ठीक नही था तो राजा ने उसे उसके अन्य भाइयों को ढूंढने के लिए नही भेजा। असमंजस का एक पुत्र था जिसका नाम अंशुमान था। अब राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा तो वहां जाकर देखता है कि उसके सारे चाचा अब राख में तब्दील हो चुके हैं। अंशुमन यह सब देख कर बहुत दुखी हुआ।
अंशुमन ने कपिल मुनि के चरणों में प्रणाम कर उनसे विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल ने प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। उसके बाद अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। अब दिलीप के पुत्र भगीरथ ने प्रण लिया की वह अपने पूर्वजों को मुक्ति दिला कर ही रहेंगे। भगीरथ हिमालय की ओर निकल गए उनके तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। हालांकि गंगा का वेग बहुत तेज था ऐसे में सिर्फ भगवान शिव ही थे जो की इस वेग को संभाल सकते थे।
इसके बाद राजा भगीरथ भगवान शिव को प्रसन्न करने में जुट गए। भगीरथ ने एक वर्ष तक एक अंगूठे में खड़े होकर के शिव की तपस्या की। भगवान शिव राजा भगीरथ की इस तपस्या से प्रसन्न हुए और गंगा को धरती पर लाने के लिए तैयार हो गए। तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा की धारा छोड़ी और गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया। यानी उसने अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलायी।”भागीरथी नदी की सहायक नदियां” :- भागीरथी में मिलने वाली पहली नदी है रुद्रगंगा। यह गंगोत्री ग्लेश्यिर के पास रूद्रगेरा ग्लेश्यिर से निकलती है।इसके पश्चात इसमें मिलती है केदारगंगा। यह थलया सागर के पर्वत श्रेणी में स्थित केदारताल से निकलती है और गंगोत्री धाम में भागीरथी नदी में जाकर मिलती है। यहां पर भगीरथ शिला भी है। जिस पर राजा भगीरथ का मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने इसी स्थान पर बैठ कर तपस्या की थी।इसके पश्चात इसमें जाड़गंगा या जाह्नवी नदी मिलती है। यहां पर जाड़गंगा भौरोघाटी नामक स्थान पर भागीरथी से मिलती है।इसके पश्चात इसमें सियागंगा या सियागाड़ नदी मिलती है।यहां पर सिंयागंगा झाला नामक स्थान पर भागीरथी नदी से मिलती है।तत्पश्चात इसमें असीगंगा मिलती है। यहां पर असीगंगा डोडीताल से निकल कर गंगोत्री में भागीरथी से मिलती है।इसके बाद इसमें भिंलगना नदी मिलती है। यह भागीरथी की सहायक नदी भी मानी जाती है। यह खतलिंग ग्लेश्यिर टिहरी से निकलकर गणेशप्रयाग में भागीरथी से मिलती है। भिंलगना की सहायक नदी है। मेदगंगा, दूधगंगा, बालगंगा आदि। बालगंगा भिंलगना की प्रमुख सहायक नदी है। इसकी भी एक सहायक नदी है। धर्मगंगा, यह बूढ़ा केदार में बालगंगा से मिलती है।”तत्पश्चात सबसे आखिर में यह अलकनंदा से मिलकर गंगा का निर्माण करती है।” Bhagirathi river
“भागीरथी नदी पर स्थित बांध” Dam on Bhagirathi river
भागीरथी नदी (Bhagirathi river )में कुल चार बांध बनाए गए हैं
टिहरी बांध
भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 260 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है।
मनेरी बाँध
मनेरी बाँध मनेरी में स्थित भागीरथी नदी पर बना एक ठोस गुरुत्वाकर्षण बाँध है। मनेरी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में उत्तरकाशी से 8.5 किलोमीटर पूर्व में है। इस बांध का प्रारंभिक उद्देश्य पानी को एक सुरंग में मोड़ना है। सुरंग 90 मेगावाट रन-ऑफ-रिवर हाइड्रोइलेक्ट्रिकिटी (आरओआर) तिलोथ पावर प्लांट को खिलाती है।
जोशीयारा (भाली) बांध
धरासू पावर स्टेशन या जोशीयारा बांध भागीरथी नदी पर चलने वाला एक नदी-पनबिजली स्टेशन है। यह उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धरासू में स्थित है।
कोटेश्वर बांध
कोटेश्वर बांध भागीरथी नदी पर बना एक गुरुत्वाकर्षण बांध है। यह टिहरी जिला, उत्तराखंड में टिहरी बांध के 22 किमी नीचे स्थित है। बांध टिहरी जलविद्युत परिसर का एक हिस्सा है। यह सिंचाई के लिए टिहरी बांध की पूंछ दौड़ को विनियमित करने और टिहरी पंप स्टोरेज पावर स्टेशन के निचले जलाशय बनाने के लिए कार्य करता है।
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