!! कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) !!

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Krishna Janmashtami hare krishna hare rama जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है खासकर हिंदू धर्म में। यह त्योहार भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इसके अलावा भारत से बाहर के भी कुछ देशों में यह उत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी में लोग व्रत (उपवास) करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, कृष्ण की जो बाल समय की लीलाएं थी उन पर नाटक करते हैं व इनपर नृत्य भी करते हैं, कृष्ण के जन्म समय में ( अर्थात मध्य रात्रि में) भजन कीर्तन करते हैं और इसमें साथ ही दही हांडी बनाकर इसको फोड़ते हैं। जब जन्माष्टमी के दिन आधी रात में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म होता है उसके पश्चात लोग अपने घरों में जो छोटे कृष्ण जी की मूर्ति होती है उसको अच्छे से स्नानादि कराते है, उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। तत्पश्चात नन्हे कृष्ण जी को पालने में रखा जाता है और उन्हें झूला झुलाते हैं। इसके पश्चात ही लोग अपना व्रत खोलते हैं। सभी भक्तजन मिठाई और भोजन बांटते हैं और अपना उपवास पूरा करते हैं। मध्य रात्रि में ही बच्चे अपनी माताओं या बहनों के साथ मिलकर घर के द्वार पर नन्हे कान्हा जी के पैरों के निशान भी बनाते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर ही कृष्ण जी के प्रसिद्ध मंदिरों में 'भगवद गीता' और 'भागवत पुराण' का भी पाठ होता है।

Krishna Janmashtami कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। जिसे सभी लोग मिलकर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी या कृष्णष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार हर साल मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पावन त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। जन्माष्टमी का यह त्योहार हर वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भाद्रपद में मनाया जाता है। जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से हर वर्ष अगस्त या सितंबर में आता है।

!! कैसे मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी !! | Krishna Janmashtami

जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है खासकर हिंदू धर्म में। यह त्योहार भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। इसके अलावा भारत से बाहर के भी कुछ देशों में यह उत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी में लोग व्रत (उपवास) करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, कृष्ण की जो बाल समय की लीलाएं थी उन पर नाटक करते हैं व इनपर नृत्य भी करते हैं, कृष्ण के जन्म समय में ( अर्थात मध्य रात्रि में) भजन कीर्तन करते हैं और इसमें साथ ही दही हांडी बनाकर इसको फोड़ते हैं। जब जन्माष्टमी के दिन आधी रात में भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म होता है उसके पश्चात लोग अपने घरों में जो छोटे कृष्ण जी की मूर्ति होती है उसको अच्छे से स्नानादि कराते है, उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। तत्पश्चात नन्हे कृष्ण जी को पालने में रखा जाता है और उन्हें झूला झुलाते हैं। इसके पश्चात ही लोग अपना व्रत खोलते हैं। सभी भक्तजन मिठाई और भोजन बांटते हैं और अपना उपवास पूरा करते हैं। मध्य रात्रि में ही बच्चे अपनी माताओं या बहनों के साथ मिलकर घर के द्वार पर नन्हे कान्हा जी के पैरों के निशान भी बनाते हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर ही कृष्ण जी के प्रसिद्ध मंदिरों में ‘भगवद गीता’ और ‘भागवत पुराण’ का भी पाठ होता है।

!! कृष्ण जन्म की कथा !! | Krishna Janmashtami

Krishna Janmashtami hare krishna hare rama: कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। जिसे सभी लोग मिलकर बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी या कृष्णष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार हर साल मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पावन त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था। श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं। जन्माष्टमी का यह त्योहार हर वर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भाद्रपद में मनाया जाता है। जो कि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से हर वर्ष अगस्त या सितंबर में आता है।

श्री कृष्ण जी के माता पिता देवकी और वासुदेव जी हैं। जब देवकी और वासुदेव की शादी हुई उसके बाद जब देवकी का भाई कंस अपनी बहन को उसके ससुराल छोड़ने जा रहा था तभी आसमान में बिजली चमकी और एक भविष्यवाणी हुई, जिस भविष्यवाणी में कहा गया कि हे कंस! तुम्हारी बहन देवकी की जो आठवीं संतान होगी वही तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेगा। यह सब सुन कंस तिलमिला गया, उसके बाद वह देवकी और वासुदेव को वापिस अपने महल ले कर आया और उन दोनों को कैद में बंद कर दिया और बाहर से कड़ा पहरा लगा दिया। कोई भी बाहर से अंदर नहीं जा सकता था और अंदर से बाहर नहीं जा सकता था। कंस ने उसके बाद बहुत सोचा और कंस के मन में खयाल आया की आठवीं संतान ही क्यों वह पहले भी तो हो सकता है। कंस ने पहरा करने वाले सिपाहियों को आदेश दिया कि जब भी देवकी किसी भी संतान को जन्म दे तो वह उन्हें तुरंत आकर कंस को बताएं। हर बार ऐसा ही होता था देवकी के 7 पुत्र हुए और सातों को कंस ने मार दिया। जब आठवें संतान के पैदा होने का समय आया तब उस दिन स्वयं भगवान जी देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट हुए। भगवान ने कहा वासुदेव तुम अपनी इस संतान को गोकुल ले जाओ और वहां जाकर नंदबाबा और यशोदा मां के घर इसको छोड़ कर आओ। भगवान के यह कहते ही एकाएक वासुदेव की सारी जंजीरे टूट गई और जितने भी सैनिक वहां थे वे सभी मूर्छित हो गए। वासुदेव जी अपने आठवें पुत्र को लेकर के नंद बाबा के घर की ओर निकल पड़े। अब बीच में उन्हें यमुना नदी को पार करके जाना था। नदी का जलस्तर बहुत बड़ा हुआ था, नंद बाबा ने कृष्ण को एक टोकरी में रखा और यमुना में उतर गए धीरे-धीरे उन्होंने नदी पार कर ली और नंद गांव पहुंच गए उन्होंने अपने पुत्र को नंद बाबा को सौंप दिया और उनकी पुत्री को अपने साथ वापस ले आए। वापस आते ही सारे मूर्छित सिपाही खड़े हो उठे उन्होंने कंस को जाकर बताया कि देवी की आठवीं संतान पैदा हो चुकी है। कंस जैसे ही कारागार में पहुंचा उसने उस बच्चे को लिया और वहां से बाहर आ गया उसने जब उस कन्या को देखा तो वह अचंभे में रह गया। फिर उसने सोचा कन्या हो या पुत्र कोई भी मेरी हत्या कर सकता है, उसने जैसे ही उस कन्या को मारने के लिए फेंका वह एकाएक आसमान में ऊपर चली गई वहां जाकर उसने देवी का रूप ले लिया उसके बाद उसने कहा कि कंस तेरे को मारने वाला पैदा हो चुका है। उधर नंद गांव में धीरे-धीरे कृष्ण बडे हुए और उन्होंने अपने बाल समय में कई बाल लीलाएं की और यौवन में रास लीला भी रचाई। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए इस बीच कई दैत्यों को भेजा परंतु कोई भी कृष्ण को मार न पाया। बड़े होने के पश्चात वह मथुरा आए और अपने मामा कंस की हत्या की। उसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता देवकी और वासुदेव को कारागार से छुड़वा लिया।

!! कृष्ण कौन है !!

श्री कृष्ण जी हिंदू धर्म में भगवान हैं। यह भगवान विष्णु जी के साक्षात अवतार हैं। कहा जाता है की राम और कोई नही बल्कि भगवान विष्णु के ही अवतार हैं, जिन्होंने रावण को मारने के लिए धरती पर जन्म लिया था। विष्णु के दस अवतार प्रसिद्ध हैं। रावण को मारने के बाद इन्होंने कृष्ण अवतार लिया। यह अवतार इन्होंने राजा कंस को मारने के लिए लिया था। और इसके अलावा विद्वानों का अब यह कहना है की इस कलयुग को खत्म करने के लिए अब श्री विष्णु कल्कि रूप धारण करेंगे और इस धरती पर आयेंगे। भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। कृष्ण माता देवकी और पिता वासुदेव के आठवें पुत्र हैं। श्री कृष्ण बचपन से ही बहुत नटखट और शरारती थे। अपने बाल जीवन में उन्हें माखन, दूध, दही बहुत पसंद था इसीलिए सब उन्हे माखन चोर भी बुलाते हैं। कृष्ण के कई नाम भी हैं इन्हें कान्हा, कन्हैया, वासुदेव, द्वारकाधीश, श्यामा, गोपाल, केशव, आदि नामों से जाना जाता है।

!! कहां कहां मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी !! Krishna Janmashtami

कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भारत देश के अनेक राज्यों में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। देश के अलग अलग राज्यों में यह अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। इसके रिवाज कई राज्यों में लगभग एक समान ही हैं। जन्माष्टमी महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, मणिपुर, मध्य प्रदेश, ओडिशा, असम, कर्नाटक, बिहार तथा तमिलनाडु जैसे भारत के अन्य सभी राज्यों में पाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। जन्माष्टमी प्रमुख रूप से कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा (उत्तर प्रदेश ) में मनाई जाती है और साथ ही वृंदावन में भी इसे धूम धाम से मनाया जाता है।

मथुरा और वृंदावन (Mathura or Vrindavan) Krishna Janmashtami

मथुरा में कृष्ण का जन्म हुआ और वृंदावन में वह पले बढ़े हैं इसलिए जन्माष्टमी के पर्व पर वृंदावन और मथुरा में खास उत्सव मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर इन जगहों मे भगवान श्री कृष्ण की बचपन की लीलाओं की झांकियां निकाली जाती है। यहां पर उपस्थित सभी मंदिरों को फूलों द्वारा सजाया जाता है। साथ ही जन्माष्टमी पर मंदिरों में विशेष तरह की पूजा भी होती है। इस समय इन जगहों पर देश-विदेश से लोग और कृष्ण भक्त आते हैं और यहां आकर के कृष्ण और राधा के प्रेम में पड़ जाते हैं। उत्तरी राज्यों में, जन्माष्टमी को रासलीला की प्रथा के साथ मनाया जाता है। कृष्ण की रासलीला को जन्माष्टमी के दिन पर अकेले व समूह नृत्य और नाटक कार्यक्रमों के रूप में दिखाया जाता है। कृष्ण के बचपन की नटखट क्रीड़ा और राधा-कृष्ण के प्रेम को विशेष रूप से इसमें दिखाया जाता है।

द्वारका (Dwarka) Krishna Janmashtami

द्वारका एक नगरी है जो की गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित है। इस नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने ही बसाया था इसीलिए इसे कृष्ण नगरी के नाम से भी जाना जाता है। जन्माष्टमी के पर्व पर द्वारका में उपस्थित मंदिरों को फूलों से सजाया जाता है। पूजा के समय भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमाओं पर सोने के आभूषण चढ़ाए जाते हैं। जन्माष्टमी के पूरे दिन अन्य जगहों की तरह दही हांडी नही बनती बल्कि वहां पर मक्खन हांडी के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर पूरे गुजरात की महिलाएं घर का कोई भी कार्य नही करती हैं और दिन भर ताश खेलती है।

मुंबई-महाराष्ट्र (Mumbai-Maharashtra) Krishna Janmashtami

मुंबई व महाराष्ट्र और भारत के अन्य सभी पश्चिमी राज्यों में जन्माष्टमी को बड़े पैमाने में मनाया जाता है। जन्माष्टमी को लेकर सभी के मन में अलग उत्साह भरा हुआ रहता है। यहां पर लोग व्रत करते हैं, रात्रि जागरण करते हैं, अर्ध रात्रि में कृष्ण जन्म के पश्चात अपने व्रत को खोलते हैं। सभी लोग कृष्ण भक्ति में लीन हुए रहते हैं। जन्माष्टमी के अगले दिन इन जगहों पर बड़े स्तर में ‘दही हांडी’ का आयोजन किया जाता है। कथाओं के अनुसार बालकृष्ण को दही तथा माखन बहुत पसंद था। वह गोकुल में सभी के घर से दही और माखन चुराते थे और उसको खाते थे। गोकुल में उपस्थित महिलाएं अपने दही और माखन के बर्तन को घर में ऊपर लटका देती थी, इसके बाद जब श्री कृष्ण उसे चुराने के लिए जाते थे तो वह उनकी पहुंच से दूर होता था। वह आपने बाल सखाओं की पीठ पर ऊपर चढ़कर उस हांडी से दही और माखन को चुराकर खाते थे। इस जगह के लोग इसी तरह दही की हाँडियों को बनाते हैं और उस हांडी को काफी ऊपर तक रस्सियों की सहायता से बांध देते हैं। परम्परा के अनुसार, “गोविंदा” कहे जाने वाले लड़कों की टोलियाँ ऊपर टंगी हुई इन हाँडियों के चारों ओर खूब नाचते हैं और गाते हैं। सभी लोग मिलकर यह सब देखते हैं और उनको प्रोत्साहित भी करते हैं। नाचने के बाद वह एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हैं और उस हांडी को फोड़ते हैं। इसके पश्चात लोग हांडी से निकले हुए दही को प्रसाद के रूप में खाते हैं। इन जगहों में दही हांडी से जुड़ी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं और जीतने वाली गोविंदा टोली को पुरुस्कृत भी किया जाता है। दही हांडी खासकर महाराष्ट्र, नांदेड़, मुंबई, नागपुर, पुणे, और लातूर जैसे नगरों में मनाई जाती है।

उत्तराखंड में जन्माष्टमी का महोत्सव(Uttrakhand) Krishna Janmashtami

उत्तराखंड में भी जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही जोर शोर से मनाया जाता है। उत्तराखंड में जन्माष्टमी के अवसर पर बड़े ही नहीं बल्कि छोटे बच्चे भी व्रत आदि करते हैं और इसे बड़े ही हर्ष के साथ मनाते हैं। सभी लोग अपने अपने घरों में श्री कृष्ण जी की पूजा अर्चना करते हैं, उनके साथ साथ ही अन्य सभी देवी देवताओं की भी पूजा करते हैं। सभी लोग प्रसाद के रूप में तरह तरह के पकवान बनाते हैं और अपने आस पड़ोस में भी देते हैं।

दक्षिण भारत (South India) Krishna Janmashtami

दक्षिण भारत में जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। गोकुलाष्टमी को दक्षिण भारत में भी सभी लोग बहुत उत्साह के साथ मनाते है। तमिलनाडु में इस दिन लोग अपने घरों के आंगन को कोलम (चावल के घोल से तैयार सजावटी पैटर्न) से सजाते हैं। इसके पश्चात वे लोग घर के दरवाजे से लेकर घर के अंदर पूजा घर तक कृष्ण के पैरों के नन्हे निशान बनाते हैं। इस दिन सभी लोग मिलकर गीता गोविंदम और भगवान कृष्ण से जुड़े अन्य भक्ति के गीत गाते हैं। यहां पर यह त्योहार शाम को मनाया जाता है क्योंकि कृष्ण का जन्म अर्धरात्रि में हुआ था। यहां पर उपस्थित ज्यादातर लोग इस दिन व्रत रखते हैं और आधी रात की पूजा के बाद ही भोजन करते हैं।आंध्र प्रदेश में भी भक्ति गीतों का पाठ होता है और यही इस त्योहार की खास बात है। यहां पर अन्य विशेषता भी है की यहां पर युवा लड़के कृष्ण भगवान की तरह ही तैयार होते हैं और अपने दोस्तों से मिलते हैं। आंध्र प्रदेश के लोग भी उपवास रखते हैं। इस दिन श्री कृष्ण को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए दूध और दही के साथ खाने की चीजें तैयार की जाती हैं। कृष्ण मंदिरों में कृष्ण नाम का जप सुबह शाम होता है।उडुपी कर्नाटक में स्थित है। उडुपी में मौजूद श्री कृष्ण मठ भगवान श्री कृष्ण को समर्पण है। यहां पर भगवान कृष्ण के बाल रूप को बेहद ही खूबसूरत तरीके से सजाया जाता है। जन्माष्टमी के पावन मौके पर यहां भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रदर्शन करवाया जाता।

पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत (East India) Krishna Janmashtami

जन्माष्टमी बड़े पैमाने से पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के हिंदू वैष्णव समुदायों द्वारा मनाई जाती है। जन्माष्टमी पर मां बाप अपने बच्चों को कृष्ण की किंवदंतियों, जैसे कि गोपियों और कृष्ण के पात्रों के रूप में तैयार करते हैं। मंदिरों को फूलों द्वारा सजाया जाता है। इसके साथ साथ ही भागवत पुराण और भगवत गीता का भी आयोजन यहां पर होता है।जन्माष्टमी मणिपुर में शास्त्रों के पाठ, उपवास और कृष्ण प्रार्थना के साथ मनाया जाता है। इस मौके पर यहां पर तरह तरह के खेलों का आयोजन किया जाता है।

!! भारत के बाहर अन्य देशों में जन्माष्टमी !! Krishna Janmashtami

जन्माष्टमी भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसे भारत से बाहर अन्य देशों में भी खूब अच्छे से मनाया जाता है। यह देश निम्नलिखित हैं :

फ़िजी (Fiji) Krishna Janmashtami

फिजी में कई परिवार हिंदू परिवार हैं जो की जन्माष्टमी को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं। फिजी में जन्माष्टमी को “कृष्णा अष्टमी” के रूप में जाना जाता है।यहां पर जन्माष्टमी तब से मनाई जाती है जब वहां पर पहले भारतीय व्यक्ति जो की एक मजदूर थे वहां पहुंचे थे। उनका नाम गिरमिटिया था। फिजी में जन्माष्टमी का यह महोत्सव आठ दिनों तक चलता है। आठवें दिन जब कृष्ण का जन्म होता है उसके बाद ही यह कार्यक्रम खत्म होता है। इन आठ दिनों में फिजी में सभी मंदिरों को और घरों में सजावट होती है। इसके पश्चात सभी हिंदू परिवार मंदिरों में इकट्ठा होते है और भागवत पुराण का पाठ करते हैं। इसके अलावा वह भक्ति गीत भी गाते हैं और सब कार्य खत्म होने के पश्चात प्रतिदिन प्रसाद भी बांटते हैं।

नेपाल ( Nepal) Krishna Janmashtami

नेपाल की लगभग अस्सी से पिचासी प्रतिशत जनसंख्या कृष्ण जन्माष्टमी को मानते है। नेपाल में लोग मध्य रात्रि तक व्रत रखते हैं। वहां के लोग कीर्तन भजन करते हैं, जागरण करते हैं और भगवद गीता का पाठ भी करते हैं। इस पर्व में कृष्ण के मंदिरों की खूब साज सज्जा होती है और लोग मंदिरों में जाकर के पूजा पाठ करते हैं।

बांग्लादेश (Bangladesh) Krishna Janmashtami

बांग्लादेश में जन्माष्टमी के पर्व पर एक दिन का राष्ट्रीय अवकाश होता है। इस दिन वहां पर ढाकेश्वरी नामक मंदिर से एक रैली निकाली जाती है और यह रैली पूरे ढाका क्षेत्र में घुमती है। यह रैली निकालने की शुरुआत यहां 1902 से हुई थी लेकिन 1948 में इस पर रोक लगा दी गई थी। यह रैली वापिस से 1989 से फिर शुरू की गई।इसके अलावा अन्य देश भी हैं जहां पर इसी तरह के कार्यक्रम होते हैं।

रूस (Russia) Krishna Janmashtami

जैसा कि मॉस्को में भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है, इस्कॉन अनुयायी आध्यात्मिकता की अपनी यात्रा और एक ऐसी जीवन शैली का वर्णन करते हैं जहां वे शाकाहारी होते हैं और शराब और धूम्रपान से दूर रहते हैं। हिंदू भगवान कृष्ण को उनके जन्मदिन, जन्माष्टमी पर श्रद्धांजलि देने के लिए रूसी राजधानी में कई उत्सव कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ये उत्सव बड़े पैमाने पर इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) के कारण हैं, जिसने आंदोलन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद की बदौलत मास्को तक अपनी पहुंच बनाई। जैसे ही इस्कॉन भक्त कीर्तन और भजन में भाग लेते हैं, अपने और अपने परिवार और दोस्तों के लिए अनुष्ठानों की व्यवस्था करते हैं, और प्रसाद के स्वाद का आनंद लेते हैं, कुछ दीर्घकालिक अनुयायी इस बात को याद करते हैं कि उन्हें धर्म कैसे मिला। कई लोगों के लिए, भगवद गीता के ज्ञान के शब्द उनके जीवन के लिए मार्गदर्शक मार्ग बन गए। रूसी शहर कुर्गन के मैकेनिकल इंजीनियरिंग संस्थान के पूर्व प्रोफेसर आंद्रेई खारितोनोव एक रूसी इस्कॉन भक्त हैं। जैसा कि आपने सोशल मीडिया पर रूसी लोगों के कृष्ण भजन और कीर्तन पर गाते और नृत्य करते हुए कई वीडियो देखे हैं। वे कृष्ण जन्माष्टमी को दिल से मनाते हैं और उनका पालन करते हैं।

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