Emotional Short Story in Hindi: कहानियां शिक्षकों की तरह होती हैं जो हमें नई चीजें और अच्छे मूल्य सिखाती हैं। वे बच्चों के लिए विशेष रूप से अच्छी हैं। आज मैं आपको एक ऐसी Emotional Kahani बताना चाहती हूं जो आपको उदास कर सकती है, लेकिन आप इससे कुछ महत्वपूर्ण सीख या प्रेरणा भी ले सकते हैं। तो कृपया पूरी कहानी पढ़िए।
उत्तराखण्ड की रामी बौराणी की कथा
रामी बौराणी की कथा उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल की एक बहुप्रचलित लोककथा है। रामी एक महिला होती है जिसके पति का नाम वीरू होता है। रामी का पति बीरू फौज में है। एक बार उसके पति को युद्ध के लिए दूर बॉर्डर पर लड़ने जाना पड़ता है। रामी भी अन्य महिलाओं की तरह ही अपने पति के घर आने का इंतजार करती रहती है। रामी और वीरू की शादी होते ही वह बॉर्डर में चला गया था। रामी अपने पति को बहुत याद करती है। रामी के साथ उसकी बूढ़ी सासू मां भी रहती है उसके ससुर की मृत्यु पहले ही हो गई थी। रामी भी पहाड़ की अन्य सभी महिलाओं की तरह ही घर के सारे काम करती है। वह पानी भरती है, घास काटती है, जानवरों की देखभाल करती है, रसोई के काम-काज करती है,खेतों का काम करती है।रामी यह सब काम करती है परंतु उसको उसके पति की बहुत याद आती रहती है। वो जैसे तैसे अपना मन काम में लगाती है।रामी अपने पति वीरू का इन्तजार करती रही उसका इंतजार ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
समय बीतता गया देखते ही देखते 12 वर्ष यों ही गुजर गए। पर न उसका पति आता है और न उसकी कोई भी खबर आती है। लेकिन रामी ने आश न छोड़ी उसे विश्वास था कि मेरे पति एक न एक दिन वापिस जरूर आयेंगे। रामी घर और खेतों में मेहनत करती रहती थी और अपना और अपनी सासू मां का पेट जैसे तैसे करके भरती थी।12 साल बाद वीरू किसी तरह दुश्मनों के चंगुल से छूट जाता है और वह सीधे अपने गांव को आता है। जब वीरू गांव वापिस लौटता रहता है तो वह सोचता है की मुझे गांव से गए अब 12 साल हो चुके हैं। 12 साल का वक्त बहुत लंबा होता है।इतना समय गुजर चुका है, तो क्या मेरी मां जिंदा होगी या पत्नी ठीक होगी, दोनो न जाने किस हाल में होंगे, या मेरी पत्नी ने कहीं किसी और से तो शादी नही कर ली होगी या फिर उसने किसी और को तो अपने मन में नही बसा लिया होगा, वह ये सब सोचता रहा तभी उसके मन में एक खयाल आया कि क्यों न मैं अपनी पत्नी की परीक्षा लूं पता करू की मेरे पीछे क्या क्या हुआ है।वह गाँव पहुँचने से पहले ही पत्नी का इम्तहान लेने के लिए एक संन्यासी बाबा का रूप ले लेता है। वह गांव पहुंचता है तो यह दोपहर का समय था। बहुत ही तेज धूप लगी हुई थी। गांव में कोई भी अपने घर से बाहर नहीं दिख रहा था।
जब वो अपने घर के पास पहुंचा तो उसने देखा उनके घर के पास वाले खेत में एक महिला काम कर रही थी। जब वह थोड़ा और पास जाकर देखता है तो महिला के मुंह में उदासी सी छाई रहती है। ध्यान से देखने पर उसको पता चलता है की यह तो मेरी पत्नी है उसकी रामी। इतने साल के इंतजार से और इतनी मेहनत से उसके चेहरे का पूरा नूर खत्म हो गया था।अब रामी का पति जिसने संन्यासी का रूप लिया है रामी के पास जाकर उस से उसका परिचय पूछता है। हे! दोपहर की चटख धूप में गुड़ाई करने वाली रुपसा तुम कौन हो, तुम्हारा नाम क्या है? तुम किसकी बेटी और बहू हो? तुम किस घर में रहती हो? दिन चढ़ आया है, सब अपने घरों को जा चुके हैं पर तुम अकेली गुड़ाई कर रही हो। रामी साधू को प्रणाम करती है और साधू के पूछने पर रामी उसे बताती है कि पति लम्बे समय से प्रदेश में युद्ध में है और वह उसका इंतजार कर रही है। वह साधू से कहती है कि आप तो जोगी है तो आप कृपया यह बता सकते हैं की मेरे पति घर कब आयेंगे।साधू खुद को सिद्ध बताते हुए कहता है कि मैं तुम्हारे सभी सवालों का जवाब दूंगा परंतु, पहले तुम अपना पता बताओ। रामी काम करते करते साधु को बताती है कि मेरा नाम रामी है। मैं रावतों की बेटी हूँ और पाली के सेठों की बहू हूं। साधू उस से फिर पूछता है कि तेरे सास-ससुर और तेरा पति कहाँ हैं। रामी उसे बताती है कि मेरे ससुर जी परलोक सिधार चुके हैं और सासू मां घर पर हैं। मेरे पति जंग में गए थे बहुत साल गुजर गए वो अभी तक लौटे नही हैं और न ही उनका कोई कुशल मंगल का संदेश आया है। अब उसका पति उसकी असली परीक्षा लेने के लिए उससे कहता है अरे! रामी तू इतने बरसों से उसका इंतजार क्यों कर रही है क्यों तू अपनी जवानी बरबाद कर रही है। क्या पता तेरा पति अब जिंदा है भी या नही। वह अब वापिस नही आएगा। साधू कहता है कि चल दोनो चलते हैं पेड़ की छाया के नीचे बैठ कर दो बातें करते हैं। ये सुनते ही रामी को गुस्सा आ जाता है वह साधू को खरी-खोटी सुनाते हुए कहती है कि तू साधू नहीं कपटी है, तेरे मन में खोट है। साधू पुनः उसे फुसलाने की कोशिश करता है. रामी कहती है कि धूर्त! तुझे बैठना ही है तो अपनी बहनों के साथ बैठ। मैं एक पतिव्रता नारी हूँ अगर आगे कुछ कहा तो मेरे मुंह से गालियाँ सुनने को मिलेंगी। रामी उसको कुदाल भी दिखाती है और कहती है चुप हो जा वरना मैं इसी कुदाल से तुझे मार दूंगी।
साधू रामी के वचन सुन कर वहां से चला जाता है
थोड़ी ही दूर अपने घर में चला जाता है।उसकी मां बूढ़ी हो चुकी थी और बीमार भी रहती थी तो वह उसे पहचान नही पाई। साधू बुढ़िया का हाथ देखकर बताता है कि माई तेरा बेटा 12 साल से घर नहीं आया है। बुढ़िया उसके ज्योतिष ज्ञान से प्रभावित होकर भिक्षा के लिए अनाज देकर उससे कहती है कि मेरे बेटे के बारे में कुछ और भी बताओ बाबा की वह कब वापिस आयेगा। तब साधू कहता है कि मैं इस अनाज का क्या करूँगा। मैं बहुत भूखा-प्यासा हूं हो सके तो मुझे भोजन करा दो। भोजन करने के बाद ही मैं तुम्हारे बेटे के बारे में कुछ बता पाऊंगा।तभी रामी भी घर आ जाती है। वहां बैठे साधू को देखकर वह उससे कहती है कि तू यहाँ भी पहुँच गया। वह अपनी सास को बताती है कि ये साधू धूर्त और कपटी है। सास रामी को डाँटती है कि साधू का अपमान नहीं करते,वह साधू से क्षमा मांगते हुए कहती है कि पति के वियोग में इसका दिमाग खराब हो गया है, आप इसकी बात का बुरा न मानें। सास रामी को भीतर जाकर साधू के लिए भोजन बनाने को कहती है।
रामी सासू मां के कहने पर भोजन बनाकर साधू के लिये मालू के पत्ते में भात ले आती है। यह देखकर साधू खाना खाने से मना कर देता है और बीरू की थाली में ही खाने की जिद पकड़ लेता है। यह सुनकर रामी और भी ज्यादा बौखलाकर कहती है कि खाना है तो ऐसे ही खाओ, मैं अपने पति की थाली में किसी गैर को खाना नहीं परोस सकती हूं। मेरे पति की थाली को कोई नहीं छू सकता। वह उससे कहती है कि ऐसे ही खा नहीं तो अपने रास्ते जा।यह कहकर वह गुस्से से घर के भीतर चली जाती है। सास साधू के ज्योतिष ज्ञान से प्रभावित होकर उसे बेटे की थाली में खाना परोसने को तैयार हो जाती है, उसे लगता है कि साधू उसके बेटे के लिए कुछ उपाय भी करेगा।वीरू अपनी पत्नी का अपने लिए प्यार और विश्वास देख कर बहुत प्रभावित हो जाता है। वह अपनी माँ के चरणों में गिर पड़ता है और अपना चोला उतार फेंकता है और बताता है -माँ! मैं तुम्हारा बेटा बीरू हूँ.। माँ! देखो मैं वापस आ गया। मां बहुत खुश हो जाती है और उसको अपने गले से लगा लेती है।
इसी बीच सास की पुकार सुनकर रामी भी बाहर आ जाती है और पति को सामने देख कर बहुत ही खुश हो जाती है। इस तरह उसे अपनी तपस्या का फल मिल गया। एक पतिव्रता भारतीय स्त्री का प्रतीक रामी के तप, त्याग और समर्पण इस कहानी को उत्तराखण्ड में खूब कहा-सुना जाता है। इसकी काव्य नाटिका और गीत भी खूब प्रचलित हैं। यह एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है। “मेरे पति देश के लिए त्याग करते हैं, लेकिन मैं, मेरे बच्चे और उनकी मां ऐसा ही करते हैं।” #जयहिन्द 🙏
#HINDI EMOTIONAL STORY
#HINDI EMOTIONAL LOVE STORY
पढ़िए अगली इमोशनल कहानी