Alaknanda River: अलकनंदा नदी कहां से निकलती है, इसका इतिहास क्या है, हिंदू धर्म में क्या है इसका महत्व? जाने सब कुछ!

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Alaknanda River: भारत में नदियों का इतिहास बेहद दिलचस्प और पुराना है, जब भी पवित्रता की बात होती है नदियों के जल को ही सर्वोपरि माना जाता है, सदियों से नदियां अपनी पवित्रता बनाए हुए लोगों को अपने जल से सींचती चली आ रही हैं। जब भी बात नदियों की आती है तो इसमें सबसे पहले गंगा का नाम सुनने को मिलता है, क्योंकि भारत के इतिहास और उसकी संस्कृति में गंगा का प्रभाव अनमोल है। 

इस देश के कई प्राचीन नगर और साम्राज्य गंगा नदी के किनारे पर ही विकसित हुए। जितना दिलचस्प गंगा नदी का इतिहास है उतना ही उससे निकलने वाली जलधाराओं का भी है, गंगा से निकलने वाली जलधाराएं अपना-अलग इतिहास बयां करती हैं और नदियों का रूप लेती हैं। 

यदि गंगा नदी के किनारे-किनारे ऊपर की तरफ चला जाए तो हरिद्वार और ऋषिकेश पार करने के बाद पहाड़ों में दो नदियों का एक संगम ऐसा आता है, जिसे देखने के बाद आपके मन में यह सवाल जरूर आएगा कि इनमें से गंगा नदी कौन सी है। पर्वतों के पूर्व और पश्चिम की तरफ से निकलती हुई इन दो नदियों का वास्तविकता में इतना ज्यादा महत्व है कि इनका खुद का नाम और चरित्र है जो गंगा को बिल्कुल अलग है। 

पश्चिम बाली जलधारा को भागीरथी नाम से जाना जाता है, वहीं पूर्व वाली का नाम अलकनंदा है। भागीरथी पर किसी अन्य आर्टिकल में करेंगे, आज चर्चा का विषय अलकनंदा नदी है। आज आप इस आर्टिकल के माध्यम से अलकनंदा नदी कहां से निकलती है? इसका महत्व और इतिहास सहित सभी जानकारियां हासिल करेंगे। 

कहां से निकलती है अलकनंदा नदी | Alaknanda river origin

अलकनंदा नदी भारत के उत्तराखंड में स्थित एक हिमालयी नदी है जो गंगा की दो प्रमुख धाराओं में से एक है, यह हिंदू धर्म की पवित्र नदी मानी जाती है। अलकनंदा नदी उत्तराखंड के चमोली जिले के दो गिरीश्वर सतोपंथ और भागीरथ खड़क से होकर निकलती है। 

अपने उद्गम क्षेत्र से होकर अलकनंदा तिब्बत से 21 किलोमीटर दूर भारत के आखिरी गांव ‘माणा गांव’ में पहुंचती है, यहां वह सरस्वती नदी से मिलती है। इसके बाद अलकनंदा दक्षिण की तरफ घूम जाती है और केवल 2 किलोमीटर बाद वह बद्रीनाथ पहुंचती है। बद्रीनाथ अलकनंदा की घाटी में है। 

बद्रीनाथ को उसके प्राचीन मंदिर बद्रीनाथ मंदिर से पहचाना जाता है जो अलकनंदा के दक्षिणी तट पर है। बद्रीनाथ से चलकर अलकनंदा लांबगड से होते हुए गुजरती है, लांबगड में अलकनंदा पर पहला डैम बना हुआ है, थोड़ा और चलने के बाद अलकनंदा धौली गंगा से मिलती है और इस संगम को विष्णुप्रयाग नाम से जाना जाता है, विष्णुप्रयाग पंच प्रयागों में से पहला प्रयाग है। 

इसके बाद यह नदी अपना रुख बदलती है और दक्षिणी-पश्चिमी की तरफ बहने लगती है, थोड़ा सा चलने के बाद यह कल्प गंगा से मिल जाती है, थोड़ा और आगे चलने के बाद अलकनंदा में नंदा गोमती पर्वत से निकलने वाली बिरहई गंगा भी मिल जाती है, यहां से निकलने के बाद अलकनंदा चमोली गांव से होते हुए गुजरती है और नंदप्रयाग की ओर बढ़ती है, यहां वह नंदाकिनी गंगा से मिलती है, इस संगम को नंदप्रयाग नाम से जाना जाता है जो पंच प्रयागों में दूसरा संगम है। 

नंदप्रयाग से निकलने के बाद कुछ दूर आकर अलकनंदा पिंडर नदी से मिल जाती है, इस संगम का नाम करणप्रयाग है और यह पंच प्रयागों में तीसरा प्रयाग है, यहां से अलकनंदा दिशा बदलती है और उत्तर-पश्चिम की ओर बहने लगती है। अब तक अलकनंदा गहरी घाटियों से होते हुए बह रही थी, लेकिन गोचर में आने के बाद सब कुछ बदल जाता है यहां पर जमीन एकदम समतल है, इतना ही नहीं इस जमीन पर एक हवाई पट्टी भी है, यह समतल जमीन का सिलसिला नगरासू, घोलतीर तक चलता है, इसके बाद फिर से अलकनंदा गहरी घाटियों के बीच से बहने लगती है। 

गहरी घाटियों से बीच होती हुई अलकनंदा कोटेश्वर महामंदिर के पास पहुंचती है, यहां इसकी चौड़ाई मात्र 25 फीट रह जाती है, यहां से निकलने के बाद अलकनंदा मंदाकिनी नदी से मिलती है, यह पंच प्रयागों में चौथा प्रयाग है, जिसे रुद्रप्रयाग नाम से जाना जाता है, रुद्रप्रयाग से अलकनंदा श्रीनगर की ओर बहती है, श्रीनगर को धारी देवी के मंदिर से पहचाना जाता है, रुद्रप्रयाग से श्रीनगर तक अलकनंदा और नीचे नहीं गिरती है क्योंकि श्रीनगर के गेट पर अलकनंदा पर पड़ा डैम बना हुआ है और यहां इसकी चौड़ाई 500 मीटर तक हो जाती है। 

श्रीनगर से बहते हुए अलकनंदा मलेथा गांव से होते हुए गुजरती है, यहां से यह नदी दक्षिण-पश्चिम की तरफ बहने लगती है और गहरी घाटियों के बीच से बहते हुए अपने आखिरी पड़ाव देवप्रयाग तक पहुंचती है, यहां भागीरथी और अलकनंदा का संगम होता है, जिसे देवप्रयाग नाम से जाना जाता है, यह पंच प्रयागों में आखिरी प्रयाग है जो सबसे अहम प्रयाग माना जाता है। 

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देवप्रयाग | Devprayag sangam: Alaknanda and Bhagirathi sangam

देवप्रयाग पांचों प्रयागों में सबसे प्रसिद्ध इसलिए है क्योंकि यहां हिमालय से निकलने वाली सभी जलधाराएं एक साथ मिल जाती है और इस प्रियाग के बाद से नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है और यहां से यह नदी के गंगा के रूप में आगे बढ़ जाती है। 

अलकनंदा नदी का इतिहास | History of Alaknanda river

Alaknanda River: अलकनंदा नदी के इतिहास की बात करें तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस नदी का प्राचीन नाम विष्णुगंगा है। इस नदी पर प्राचीन मंदिर, पंच प्रयाग और ऐतिहासिक नगर बसे हुए हैं। अलकनंदा गंगा के चार क्षेत्रीय नाम मंदाकिनी, अलकनंदा, सरस्वती और भागीरथी में से एक है। 

अलकनंदा का सबसे पहला संगम विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा से होता है। अलकनंदा के पंच प्रयाग (विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, रुद्रप्रयाग, करणप्रयाग और देवप्रयाग) सबसे बड़े संगम है इनका अलग धार्मिक महत्व है, इन सभी प्रयागों पर हिंदुओं के देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर स्थित हैं। 

विष्णुप्रयाग के थोड़े ऊपर ऐतिहासिक नगर जोशीमठ पड़ता है, जिसमें प्राचीन मंदिर नरसिंह मंदिर स्थित है, जब बद्रीनाथ में कड़ाके की सर्दी पड़ती है तो उसके 6 महीने इसी मंदिर में भगवान बद्रीनाथ की पूजा होती है, वहीं बद्रीनाथ, हेमकुंड, ओली और फूलों की घाटी जाने के लिए जोशीमठ मुख्य पड़ाव है। 

इसके बाद अलकनंदा का संगम नंदप्रयाग में नंदाकिनी के साथ होता है, हर 12 साल में होने वाली नंदा राज जात की वापसी मंदाकिनी के किनारे से ही होती है, उसके बाद अलकनंदा का संगम करणप्रयाग में पिंडर नदी से होता है, माना जाता है कि महाभारत के करण ने यहां सूर्य देव की तपस्या की थी। 

इसके बाद अलकनंदा का रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी के साथ संगम होता है, जो केदारनाथ के बराबर से होकर गुजर रही है, उसके बाद अलकनंदा और भागीरथी का देवप्रयाग में संगम होता है और सभी नदियाँ एक होकर गंगा के रूप में बहने लगती हैं। देवप्रयाग में दोनों जलधाराओं का अद्भुत संगम साफ़ नजर आता है और टूरिस्ट्स को अपनी ओर आकर्षित करता है, यहां अलकनंदा नदी का रंग हल्का नीला और भागीरथी नदी का रंग हल्का हरा होता है। 

कितनी है अलकनंदा नदी की लंबाई

उत्तराखंड राज्य के चमोली के ग्लेशियर से निकलकर माणा, बद्रीनाथ, रूद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी, मंदाकिनी, करणप्रयाग, कोटेश्वर श्रीनगर और मलेथा गांव से होकर देवप्रयाग पहुंचने वाली अलकनंदा नदी की लंबाई लगभग 200 किलोमीटर है। 

अलकनंदा नदी का महत्व | Why is Alaknanda River famous?

गंगा हिंदुओं की पवित्र नदी मानी जाती है और अलकनंदा उसी की जलधारा है, इसके किनारे हिंदुओं का पवित्र तीर्थ स्थल बद्रीनाथ बसा हुआ है, ऐसे में बद्रीनाथ गए हुए श्रद्धालु इस नदी में स्नान करने के बाद बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन करने पहुंचते हैं, इसलिए इस हिमालयाई नदी को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। 

अंतिम शब्द

दोस्तों आज हमने आपको अलकनंदा नदी कहां से निकलती है? के बारे में सभी जानकारी विस्तारपूर्वक दी है, हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह जरूर समझ आई होगी, यदि आपको हमारा यह लेख अच्छा लगा तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और साथ ही इसे अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जरूर शेयर करें। इसके अलावा यदि आपको इसके संबंध में कोई सुझाव या शिकायत है तो आप हमें कमेंट के जरिए बता सकते हैं।

FAQ: Alaknanda River

Q1. अलकनंदा नदी कहां से निकलती है? 

Ans. अलकनंदा नदी उत्तराखंड के चमोली जिले के गिरीश्वर सतोपंथ और भागीरथ खड़क ग्लेशियर से शुरू होती है। 

Q2. अलकनंदा नदी की लंबाई कितनी है? 

Ans. अलकनंदा नदी की लंबाई 195 किलोमीटर है।

Q3. गंगा नदी की दो मुख्य जलधाराएं कौन सी है?

Ans. गंगा नदी की दो मुख्य जलधाराएं अलकनंदा और भागीरथी है।

Q4. अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम कहां होता है?

Ans. अलकनंदा और भागीरथी नदी का संगम देवप्रयाग में होता है।

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