एक गांव में दो बहनें रहती थी। उनका एक छोटा भाई भी था। उनके मां बाप की मृत्यु हो गई थी। दोनो बहनें मिलकर अपने छोटे भाई का लालन-पालन करती थी। बड़ी बहन खूबसूरत थी परंतु साथ साथ ही वह दिल से जालिम और क्रूर निकली, उसे धीरे धीरे इंसानों का मांस खाने की आदत हो गयी थी। सभी लोग उसके पास जाने से भी डरते थे लोगों को लगता था कि उस के शरीर में राक्षस छिपा हुआ है। साथ ही दूसरी बहन सहृदय और दयालु थी और बड़ी बहन का सम्मान तथा छोटे भाई को प्यार करती थी। वह अपने भाई से बहुत प्यार करती थी और उसे दिल का टुकड़ा और आंखों का तारा समझती थी। छोटा भाई छोटे से बड़ा हो रहा था और साथ ही बहुत प्यारा और कोमल भी दिखता था। उसे देखकर बड़ी बहन के मुंह में लार टपकती थी। वह उसे कच्चा खाना चाहती थी। परंतु छोटी बहन उसका खूब खयाल रखती थी।उनके पास बहुत सारी बकरियां भी थी।
एक दिन की बात है जब बड़ी बहन ने छोटी बहन से बकरी चराने को कहा, और कहा कि आज तुम बकरी चारा ले आओ। साथ ही बड़ी बहन ने कहा कि मैं घर में खाना बनाऊंगी और भाई की देखभाल करूंगी। पर छोटी बहन उसका इरादा भली भांति जानती थी। उसने कहा की वह भाई को अकेले घर में छोड़कर कही कतई नहीं जाएगी। उस ने कहा, बहन जी, तुम पहले की तरह ही बकरी चराने जाओ। मैं घर में आप के लिए बड़े कडाही में आपका पसंदीदा मांस पकाऊंगी। नाखुश होकर बड़ी बहन चली गयी। दूसरी बहन ने बाड़े से एक बकरी पकड़कर उसका वध किया और उसको बड़े ही मजेदार तरीके से बना दिया। बड़ी बहन के घर लौटने से पहले उसने भाई को कहीं सुरक्षित छिपाया। बड़ी बहन के आने के बाद उस ने जो मांस पकाया था वह लाकर बड़ी बहन को खाने के लिए परोस दिया और कहा- खा जाए, बहन जी, यह भाई का मांस है। सुन कर बड़ी बहन की बांछें खिल उठीं और हाथ पांव नाचे हुए। उस ने चाव से मांस को खाया। लेकिन खाने के समय उसे मालूम हुआ कि यह आदमी का मांस नहीं है। फिर भी उसने मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला।बड़ी बहन छोटी की चाल समझ गई थी।
अब दूसरे दिन, बड़ी बहन ने दूसरी बहन से बकरी चराने जाने को भेजा, इस बार छोटी बहन के पास घर पर रुकने का कोई भी बहाना नहीं रह गया था। अतः विवश होकर छोटे भाई को छिपाने के बाद वह बाहर चली गयी।शाम को जब छोटी बहन घर लौटी, तो बड़ी बहन ने भाई की एक उंगली निकालकर उस से कहा, तुम ने कल मुझे धोखा दिया था। तुमने कल मुझे बकरी खिला दी तो, आज मैं ने भाई का वधकर खाया है। यह लो, तुम्हारे लिए एक ऊंगली बची है। यह बात सुनकर दूसरी बहन को बहुत दुख हुआ और बड़ी बहन पर बहुत गुस्सा भी आया। परन्तु बड़ी बहन पर को वह कुछ भी न कह पाई। असीम पीड़ा सहते हुए वह बड़े दुख से रो रही थी और रोते रोते भाई की ऊंगली थामे वह पहाड़ के पास पहुंची। उसने वहां एक स्तूप बनाया और ऊंगली को स्तूप के अन्दर रख दिया।
वह बार बार पूजा-अर्चना करती रही और भाई की आत्मा की शांति के लिए दुआ करती रही।दूसरे दिन, जब छोटी बहन बकरी चराने पहाड़ पर गयी तो वहां उस ने देखा कि जो स्तूप उसने कल बनाया था वह एक छोटे मंदिर के रूप में बदल गया है। उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ। देखते देखते ही हवा का एक तेज झोंका आया, जिस से उस की गोद में रखी ऊंनी तौलिया बाहर निकलकर हवा के साथ मंदिर के भीतर चली गयी। तौलिया का पीछा करते हुए वह भी मंदिर के अन्दर पहुंची। तो उसने देखा की मंदिर में लाल पीला रंग का चोगा पहने एक भिक्षु उस के आगे आया और उस ने उसको ढेरों रत्न-मणि और मोती जेवर भेंट किए।खूबसूरत जौहर आभूषण लेकर वह घर लौटी, उस के हाथों में इतनी सुन्दर और कीमती चीजें देखकर बड़ी बहन को बड़ा लालच हुआ, उस ने ऐसी चीजों के आने का रहस्य पूछा। ईमानदार दूसरी बहन ने उसे सब सच सच बताया।फिर दूसरे दिन बड़ी बहन अपनी बहन की नकल पर गोद में ऊनी तौलिया लिए मंदिर के सामने गयी।
वहां पहुंचने के बाद हवा की कई झोंकें आए, लेकिन उस की गोद से तौलिया नहीं हिला। लाचार होकर बड़ी बहन ने तौलिया को मंदिर की छत पर फेंका और वह खुद मंदिर के भीतर गई। उसे भी वह भिक्षु मिला उस भिक्षु ने उस का आवभगत किया और उस के सिर और गर्दन पर अनेकों रत्न मणि और जौहर मोती पहना दिए। बड़ी बहन को यह सब देख कर अनंत प्रसन्नता हुई और वह घर की ओर चली गयी।राक्षस जैसी बड़ी बहन तब एक हरीभरी झील के पास पहुंची। वह यह देखना चाहती थी कि पानी में उसके द्वारा पहने आभूषण कितने सुन्दर लग रहे हैं। वह अपनी परछाई देख रही थी। किन्तु झील के पानी में अपनी परछाई देखकर भय आतंक के मारे वह अथाह झील में गिरकर काल के मुंह में चली गयी। दरअसल, उसने अपनी परछाई पर जो पहनी हुई चीजें देखी थीं, वह कोई रत्न पन्ने और जेवर नहीं थे, वो उस के सिर माथे पर कुंडली मारे बैठे जहरीले सांप और गर्दन छाती पर रेंगते विषाक्त कीड़े मकोड़े थे।