[ Emotional Hindi Story ] एक स्थान में एक बूढ़ी महिला रहती थी। महिला घर में अकेली थी। पति की मृत्यु कुछ साल पहले हुई थी। महिला का एक बेटा था जो कि भारतीय सेना में भर्ती था। महिला बेटे के सहारे ही जीती थी। बूढ़ी महिला का बेटा लगभग 1 साल से घर नही आया था परंतु वह हर महीने अपनी मां को खर्च के लिए कुछ पैसे भेजा करता था।एक दिन की बात है जब एक डाकिया उस महिला के घर आता है और कहता है “अम्मा! आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।”डाकिया बाबू ने अपनी साईकिल रोक दी। महिला कुछ काम में व्यस्त थी परंतु सुन कर उसने अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतारा और अपने आंचल से साफ किया। साफ करने के बाद वापस पहनती उस बूढ़ी महिला की आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई।बूढ़ी महिला ने घर से बाहर आते ही तुरंत डाकिए से कहा “बेटा! पहले जरा मेरी बात बेटे से करवा दो।”महिला ने उम्मीद भरी निगाहों से डाकिए की ओर देखा लेकिन उसने उस बूढ़ी महिला को टालना चाहा।”अम्मा! इतना टाइम नहीं रहता मेरे पास कि मैं हर बार आपकी बात आपके बेटे से करवा सकूं मेरे पास और भी बहुत काम होते हैं।
“महिला ने कहा “बेटा तुम एक महीने में एक ही बार तो इस बुढ़िया के घर आते हो बेटे से बात करवा दो बेटा उसकी बहुत याद आ रही है कबसे उस से बात भी नहीं की है और न ही वह घर आया है।””बेटा! बस थोड़ी देर की ही तो बात है मै ज्यादा बात नही करूंगी उस से।””अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!” डाकिए ने कहा।यह कहते हुए वह डाकिया रुपए बूढ़ी महिला के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा..”लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना मेरे पैसे कटते हैं।”उसने अपना फोन महिला को पकड़ा दिया। महिला ने उसके हाथ से फोन लिया और बेटे से बात करने लगी। बूढ़ी महिला ने एक मिनट की ही बात की और बेटे से उसका हाल-चाल पूछा। इतनी सी बात से ही महिला संतुष्ट हो गई। बूढ़ी महिला का चेहरा जो मुरझाया हुआ था उस पर मुस्कान छा गई।उसने डाकिए को उसका फोन लौटाया और उसका धन्यवाद करती रही।डाकिए ने कहा “ये लो अम्मा पूरे हजार रुपए हैं।
“यह कहते हुए उस डाकिया ने सौ-सौ के दस नोट बूढ़ी महिला के हाथों में थमा दिए।महिला ने डाकिए को रुकने का इशारा किया और रुपए गिनने लगी।
डाकिए ने कहा “अब क्या हुआ अम्मा?”महिला ने कहा “यह सौ रुपए रख लो बेटा! “इस पर डाकिए ने कहा “क्यों अम्मा?” महिला ने उत्तर दिया की “हर महीने तुम मेरे बेटे के भेजे हुए रुपए मुझे देने के लिए आते हो और साथ साथ ही उस से मेरी बात भी करवा देते हो तो इस सब में तुम्हारा भी तो कुछ खर्चा होता होगा ना!
“डाकिए ने कहा “अरे नहीं अम्मा!.रहने दीजिए।”डाकिए ने बहुत मना किया परंतु महिला ने जबरदस्ती उसकी मुट्ठी में सौ रुपए थमा दिए। फिर डाकिया वहां से वापस जाने को मुड़ गया।अपने घर में अकेली रहने वाली बूढ़ी महिला भी उसे ढेरों आशीर्वाद देती अपनी देहरी के भीतर चली गई।महिला के घर के बगल में कई घर थे।
महिला के बेटे के समान ही एक नौजवान पड़ोस में ही रहता था।
जब भी डाकिया महिला के घर आता तब तब वह रमेश नाम का लड़का डाकिए को देखता रहता था। यह सिलसिला 4, 5 महीने से चल रहा था। इसी बीच एक दिन की बात है जब डाकिया महिला के घर से जा रहा था तो कुछ दूर जाने के बाद रमेश ने डाकिए को रोका। रमेश ने जब डाकिए को रोका तो डाकिया सोच में पड़ गया की यह मुझे क्यू रोक रहा है परंतु डाकिया रूक ही गया। डाकिए ने कहा “बेटा यहां क्या कर रहे हो आज अपने काम पर नही गए।
“रमेश ने कहा ” चाचा जी मुझे आपसे एक सवाल पूछना हैं।
जी पूछो बेटा क्या सवाल है।”रमेश ने कहा “चाचा जी आप हर महीने जो मनी ऑर्डर लाते हैं वो कहां से लाते हैं? क्या सच में उन ताई जी का बेटा राहुल पैसे भेजता है और अगर वह पैसे भेजता है तो वह अपनी मां से बात क्यू नही करता है? आप हर महीने उन ताई जी के घर जाते हैं तो मुझे उनसे उनका बेटा बनकर बात करने के लिए क्यू कहते हैं”?
रमेश की बात सुनकर डाकिए ने उत्तर दिया-“बेटा तुम्हे तो पता ही है की राहुल भारतीय सेना में भर्ती था और हर महीने अपनी मां के लिए हजार रुपए मनी ऑर्डर भेजता था।”रमेश ने तुरंत ही प्रतिउत्तर किया “चाचा जी आपका था से क्या तात्पर्य है?” डाकिए ने उदास होकर कहा की “बेटा जैसे राहुल का हर महीने मनी ऑर्डर आता था उसी प्रकार एक दिन सरकार की तरफ से एक चिट्ठी आई और चिट्ठी के साथ साथ ही सेना के एक जवान के खून से सने हुए कपड़े आए थे। मैने जैसे ही चिट्ठी को पढ़ा तो उसमें राहुल की मृत्यु की खबर आई थी। वह एक जंग में गया था और शहीद हो गया।
बेटा यह बात उस बूढ़ी अम्मा को बताने की हिम्मत नही हुई। वह अपने बेटे के सहारे ही जिंदा है और अगर उसे यह बात पता चलती तो वह सदमे से ही अपना दम तोड़ देती।इसीलिए मैंने उन्हें नही बताया और इसलिए वह जब भी बेटे से बात करने की इच्छा जाहिर करती हैं तो मैं तुम्हारा नंबर मिला कर दे देता हूं।”रमेश के आंखों से आंसू आने लगे क्योंकि रमेश और राहुल बहुत अच्छे दोस्त थे। रमेश ने आंसू पोछते हुए पूछा “चाचा जी यह सब तो ठीक है परंतु जो मनी ऑर्डर आप हर महीने ताई जी को देते हो वह कहां से आता है।
“डाकिए ने कहा “बेटा जैसे राहुल की मां है वैसे ही मेरी मां भी थी उनका भी कुछ समय पहले देहांत हो गया है। मैं भी उन्हें राहुल की तरह ही हर महीने रुपए भेजा करता था परंतु उनकी मृत्यु के बाद मैं किसको ही रुपए भेजता और जब राहुल की मृत्यु की खबर आई तो मैंने राहुल की मां को अपनी मां समझ कर रुपए देना शुरू कर दिया।””अब एक मां का भी भला हो जाता है और मैं समझता हूं कि मेरी मां अभी जिंदा है तो मैं उन्हें ही पैसे भेज रहा हूं।”रमेश उस डाकिया का एक अजनबी की मां के प्रति आत्मिक स्नेह देख नि:शब्द रह गया ।.
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@divyasundriyal