ऑटो 🛺 ड्राइवर की ईमानदारी || Emotional Story ||

Sundriyal

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Hindi stories ऑटो 🛺 ड्राइवर की ईमानदारी Emotional Story

Emotional Story

दिन का समय था। एक ऑटो चालक सवारियों का इंतजार बस स्टैंड पर कर रहा था। उसका नाम मदन था। वह अपने बगल में खड़े दूसरे ऑटो चालक से बातें कर रहा था। दूसरे ऑटो में एक वृद्ध व्यक्ति थे। उनका नाम सुरेंद्र था। मदन उन्हे जानता था और वह उन्हें सुरेंद्र चाचा कह कर पुकारता था।सुरेंद्र चाचा ने कहा “क्या बात है मदन बेटा… आज तो तेरे चेहरे पर एक अलग ही मुसकान छाई हुई है..मदन, मुस्कुराया और बोला छोरो चा-चा किया ही बताओ अब। “अरे बेटा बताएगा नहीं तो पता कैसे चलेगा, क्यू इतनी खुश हो रही है। थोड़ा तीज से हसा और बोला, अच्छा !! तो सुनो आप।

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यात्रियों के साथ ऑटो चालक

“मदन ने उत्तर दिया “अरे चाचा”…. आपको पता है कल रात को मैंने एक मन के सुकून का काम किया…..मुझे सुकून की दौलत मिली…”सुरेंद्र चाचा ने कहा “क्या…सुकून की दौलत… अरे हमें भी तो पता चले …हमारे बेटे ने ऐसा क्या सुकून भरा काम किया और उसे कैसे सुकुन की दौलत मिली?”इसी बात को आगे बढ़ाते हुए सुरेंद्र चाचा ने कहा कि क्या तुमने किसी बडे मंत्रीजी को आटो में बैठाकर शहर में घुमाया या किसी फिल्मी एक्टर को अपने आटो में बैठाया? मदन ने कहा “अरे….नहीं चाचा।””मैंने अपने लोभ, लालच और बेईमानी को हराकर, ईमानदारी का परचम लहराया। एक गरीब और मजबूर परिवार को होनेवाले बहुत बड़े नुकसान से बचाया है। “सुरेंद्र चाचा- “क्या कह रहा है बेटा…ऐसा क्या किया तूने?”

तो इसपर मदन बोला..”चाचा कल रात मैं हर रोज की तरह ही लगभग ग्यारह बजे सवारियो का इंतजार कर रहा था। ग्यारह बजे वाली बस स्टेशन पर आई, में स्वरी देखने लगा कि तभी मेरे पास एक महिला और एक 12-13 साल का लड़का, जिनके पास दो-तीन झोले, चादर, कंबल, एक पानी की केन, स्टोव आदि बहुत सा सामान था। बस से उतरकर वह लोग सीधे मेरे पास आये और बोले, भैया सिटी हास्पिटल चलोगे?””मैंने बोला हां चलो, उन्होंने आटो में फटाफट अपना सामान रखा और खुद भी बैठ गये। मैं उन्हें लेकर 15-20 मिनिट में ही सिटी हास्पिटल पहुंच गया था।वे दोनों बड़ी हड़बड़ी में थे उन्होंने फटाफट मेरे रुपए दिए और आटो से उतरकर जल्दी-जल्दी अपना सामान उठाया और सीधे हास्पिटल के अंदर चले गये। मैने भी अपना आटो घुमाया और बारह बजे वाली बस की सवारियों के लिये वापस बस स्टैण्ड आ गया।””अब बारह बजे आने वाली बस में अभी टाइम था तो मैंने स्टैण्ड पर आटो खड़ा किया और सोचा कि जब तक बस आती है तब तक मैं पीछे की सीट पर थोड़ा लेट जाता हूं। मैं पीछे गया तो देखा सीट के पीछे एक सफेद रंग की पन्नी में कुछ बंधा हुआ पड़ा है। मैने उसको खोलकर देखा तो उसमें पांच-पांच सौ के नोटों की दो गड्डियां थी।”‘वे साठ सत्तर हजार से कम नहीं रहे होंगे।'”एकपल को तो मुझे लगा, यार आज तो मेरी लॉटरी लग गयी है। मेरे मन में खयाल आने लगे कि इन पैसों को मैं ही रख लेता हूं। वैसे भी मैं दिन भर ऑटो चलाकर आखिर कितना कमा लेता हूं कुछ भी नही, इसीलिए मुझे रात में भी काम करना पड़ता है तो क्यों न इन्हे रख लूं तो मुझे ज्यादा काम करने की भी आवश्यकता नहीं है। उसके बाद मैं जो चाहे वो कर सकता हूं। अपने बीवी बच्चों के साथ समय बिता सकता हूं।””फिर मैने सोचा की यह किसके रुपए होंगे। मेरे बहुत सोचने पर मुझे ध्यान आया कि अभी दस बजे के करीब मैने अपने रिक्शे की सफाई की थी और उसके बाद मैं सिर्फ उन सिटी हॉस्पिटल जाने वाले सवारियों को ले गया था। मेरे मन में बहुत ज्यादा लालच आ रहा था परंतु मुझे उस बेबस महिला और उसके बच्चे पर तरस आया। मुझे लगा कि वह दोनो अपना सारा सामान लेकर हॉस्पिटल गए हैं न जाने उनकी क्या मजबूरी होगी, न जाने उन्होंने यह रुपए कैसे इकठ्ठा किए होंगे। मुझे एक बार हॉस्पिटल जाकर के देखना होगा।”

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हॉस्पिटल

अब मैं वापिस हॉस्पिटल के लिए निकल गया। मैने अपना ऑटो खड़ा किया और रुपए लेकर के हॉस्पिटल के अंदर चला गया। अंदर जाते ही मेरे रौंगटे खड़े हो गए।”सुरेंद्र चाचा ने कहा “क्यों ऐसा भी क्या हो गया बेटा?”मदन ने कहा “चाचा जब मैं अंदर गया तो क्या देखता हूं की वह महिला और उसका बच्चा दोनो जमीन में लेट कर कभी डॉक्टर के पाव पकड़ रहे हैं तो कभी नर्स के पाव पकड़ रहे हैं और बिलखते हुए कह रहे हैं कि हम अपने साथ पूरे रूपए लाए थे वह न जाने कहां छूट गए हैं। आप लोग कृपया करके मेरे पति का इलाज कर दीजिए वरना वह मर जायेंगे। वह सभी लोगों के हाथ पाव जोड़ कर बस यही कह रहे थे। परंतु सभी लोग उनकी बातों को अनसुना कर रहे थे। क्योंकि आजकल दुनिया में इंसानियत नाम की कोई चीज नही रही है सभी लोगों को पहले रुपए चाहिए उसके बाद ही कोई भी काम होगा।””मेरे आंखों से उनकी यह हालत देख कर आंसू आने लगे थे। मैने खुद को संभाला और तुरंत उनके पास गया और उन्हें उनके रुपए वापिस किए। ‘महिला ने वह रुपए हॉस्पिटल में दिए और कहा अब तो मेरे पति का इलाज शुरू कर दीजिए। डॉक्टर्स ने अपना काम शुरू कर दिया।'”महिला ने मुझ से पूछा यह रुपए……? “मैने उन्हे पूरी कहानी बताई और उसके बाद वह महिला मेरे पैरों में गिरकर मेरा धन्यवाद करने लगी।”‘

अब वह थोड़ा शांत थी

तो मैने पूछा कि बहन यह सब क्या हो रहा है?’महिला ने कहा “मेरे पति यहीं शहर में छोटा मोटा काम करते हैं और मैं और मेरा बेटा गांव में रहते हैं। कल वह सड़क से जा रहे थे तो किसी गाड़ी ने उन्हें जोर की टक्कर मार दी और उनकी यह हालत हो गई। कल जब हॉस्पिटल वालों ने मुझे फोन किया और मेरे पति की हालत के बारे में बताया तब मुझे पता चला और उन्होंने साथ साथ ही यह भी कहा की इलाज में कम से कम पैंसठ हजार रूपए लगेंगे। यह सब सुनकर मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। हम एक मिडल क्लास परिवार से हैं इतने रुपए कहां से लाती?”मदन ने कहा “तो यह रुपए कहां से आए?” महिला ने कहा “गांव में छोटा सा घर था वह बेच के आई हूं और मेरे थोड़े जेवर थे वह भी बेच दिए हैं तब जाकर के यह रुपए जमा किए थे। अगर आज आप समय रहते नही आते तो न जाने क्या हो जाता, महिला मदन के लिए हाथ जोड़ने लगी।””अब मदन ने उसे कुछ रुपए दिए और वहां से चला गया। रास्ते में जाते हुए पहले तो मदन ने खुद को बहुत कोसा की मैं कैसा इंसान हूं किसी और के रुपयों का लालच कर रहा था। फिर उसे बहुत खुशी भी हुई की उसने आज बहुत ही नेक काम किया है।””मदन की सारी बात सुनकर सुरेंद्र चाचा की आंखों में आसूं आ गए और उन्होंने आंसू पोछते हुए मदन के लिए तालियां बजाईं और उसे शाबाशी भी दी।।”

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