उत्तराखंड के भूतिया गांव: आज हम आपको उत्तराखंड में अपने गांव से लोगों के पलायन के संबंध में एक गंभीर और भावनात्मक जानकारी देंगे।
Ghost villages of Uttarakhand: आज के समय में उत्तराखंड में कई सारे गांव भूतिया गांव बन चुके हैं। भूतिया गांव से यह तात्पर्य नही है की उन गांव में अब भूत रहने लगे हैं बल्कि भूतिया गांव से मतलब है की उस गांव में जितने भी घर हैं वह अब बंजर हो गए हैं। उन घरों में रहने वाले लोग अब अपने घरों और गांव को छोड़ करके शहरों में चले गए हैं। पैमाने से माने तो अब तक उत्तराखंड के लगभग 1700 गांव खाली हो चुके हैं और अभी और भी गांव खाली होने की कगार पर तत्पर हैं।लोगों द्वारा गांव छोडे जाने के कई कारक हैं। लगभग 50 प्रतिशत लोगों ने रोजगार के अभाव के कारण गांव छोड़ दिए, 16 से 17 प्रतिशत लोगों ने शिक्षा या स्कूलों की अनुपलब्धता के कारण गांव छोड़ दिए और अन्य 10 से 12 प्रतिशत लोगों ने स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण गांव छोड़ दिए और कई गांव में न बिजली की सुविधा है और न ही सड़क की सुविधा है तो लोग ऐसे ही सभी कारणों की वजह से गांव से शहर की तरफ विस्थापित हो गए हैं। यह सचमुच एक बड़ी समस्या है”।
Table of Contents: Ghost villages of Uttarakhand
राज्य में बाह्य-पलायन की चिंताजनक समस्या का अध्ययन करने के लिए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा स्थापित प्रवासन आयोग ने गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन की पुष्टि की है। इसमें मुख्य रूप से पौड़ी गढ़वाल, चमोली, अल्मोडा, टिहरी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जिले सम्मिलित हैं। इन सभी जिलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी है, इनमें रोजगार, सड़कों के बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की कमी प्रमुख है।
उत्तराखंड के भूतिया गांव प्रमुख कारण: Reason behind Ghost villages of Uttarakhand
“आज हम इन्ही भूतिया गांवों में से 4 प्रमुख भूतिया गांव की बात करेंगे की वह गांव कौन कौन से हैं और उन गांवो से पलायन के क्या-क्या प्रमुख कारण हैं” :-
जिला : पौड़ी गढ़वाल : बलूनी गांव
Ghost villages of Uttarakhand: पौड़ी गढ़वाल जिले के कल्जीखाल विकास खंड में स्थित एक गांव कुछ समय पहले खाली हो गया है। इस गांव का नाम है बलूनी गांव। बलूनी गांव की कहानी भी बहुत दर्दनाक है। बताया जा रहा है की बलूनी गांव काफी समय पहले ही खाली हो चुका था, सभी लोग इस गांव से विस्थापित हो गए थे परंतु एक पूर्व सैनिक इस गांव में सभी के जाने के बाद भी दस साल तक अकेले रहे। 66 साल की उम्र में उन्होंने भी आखिरकार गांव को छोड़ दिया है, उनका नाम है श्यामा प्रसाद। श्यामा प्रसाद ने अपने खराब स्वास्थ्य के चलते गांव को अलविदा कह दिया है। श्यामा प्रसाद एक पूर्व सैनिक हैं जिसके कारण वह बहुत ही मेहनती हैं। उनके जाने के बाद अब पूरा गांव वीरान हो गया है। वह अपने खराब स्वास्थ्य की वजह से गांव को अलविदा कह कर कोटद्वार चले गए हैं। उनके गांव में सड़क सबसे बड़ी दुविधा थी और विडंबना यह है कि उनके गांव से जाते ही अब उनके गांव में सड़क आ गई है लेकिन, अब इस सड़क का लाभ उठाने वाला कोई भी व्यक्ति इस गांव में नही बचा है। बलूनी गांव में आज से पंद्रह साल पहले तक लगभग 45 परिवार रहते थे परंतु वह सभी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतो के अभाव में यहां से पलायन कर गए। श्यामा प्रसाद भी खेती के लालच में ही यहां पर रहते थे। इस गांव में पेयजल की भी काफी समस्या थी। इस गांव में अगर किसी व्यक्ति को प्राथमिक उपचार की आवश्यकता होती तो उन्हें लगभग 10 कि० मी० दूर घंडियाल पैदल जाना पड़ता था और वहां जाने के लिए तब सड़क भी नही होती थी। बलूनी गांव में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए घने जंगलों से होते हुए लगभग 1 कि० मी० दूर सेनार पैदल जाना पड़ता था तथा वहीं बड़े बच्चों को इंटर कॉलेज की शिक्षा के लिए लगभग 8 कि० मी० दूर पुरियाडथ जाना पड़ता था। गांव में रोजगार का भी कोई बड़ा साधन नही था। इन्ही सारे कारणों की वजह से आज बलूनी गांव अब भूतिया गांव बन गया है। [उत्तराखंड के भूतिया गांव]
जिला : चंपावत :स्वाला गांव
Ghost villages of Uttarakhand: चंपावत जिले का स्वाला गांव पिछले कई सालों से खाली पड़ा हुआ है। इस गांव के खाली होने के पीछे एक बहुत बड़ी वजह है। स्वाला गांव कई सालों से चर्चा में बना हुआ है। लोग इसको उत्तराखंड का सबसे बड़ा भूतिया गांव भी मानते हैं। टनकपुर से चंपावत की ओर जाते हुए यह गांव मध्य में आता है। 64 साल पहले यहां ऐसा नहीं था। सबकुछ ठीक था। अन्य गांवों की तरह यहां भी चहल-पहल थी, यह गांव पूरा भरपूर था लेकिन एक हादसे ने इस गांव को भूतों का अड्डा बना दिया।गांव के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि वर्ष 1952 में 8 पीएसी जवानों से भरी एक मिनी बस गांव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। सभी जवान बुरी तरह घायल हो गए थे। जवानों ने ग्रामीणों से मदद की पुकार लगाई। कहते हैं कि ग्रामीण आए लेकिन उन्होंने जवानों की मदद नही की उनकी मदद करने के बजाय वह उनका सामान लूटकर चले गए। जवान मदद के लिए चिल्लाते रहे लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। इलाज न मिल पाने से जवानों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। उस वक्त गांव में 20 से 25 परिवार रहते थे। कहा जाता है कि उसके बाद गांव में अजीबोगरीब घटनाएं हुई, जिसके बाद ग्रामीण आतंकित हो गए। इसके बाद अफवाह फैली कि उन सैनिकों के भूत अब गांव में आ गए हैं। इस अफवाह ने गांव को खाली करा दिया। वहीं, बुनियादी सुविधाओं के अभाव में भी गांवों से पलायन जारी रहा। अजीबोगरीब घटनाओं से खौफजदा ग्रामीणों ने धीरे-धीरे गांव छोड़ दिया। आज पूरा गांव खाली हो चुका है। कहा जाता है की इस गांव में आज भी इस गांव में उनकी आत्माएं घूमती रहती हैं। जिस जगह पर पीएसी जवानों की गाड़ी गिरी थी आज उस जगह पर एक मंदिर बनाया गया है और इस रास्ते से गुजरने वाली हर गाड़ी इस जगह पर रुकती है। स्वाला गांव से कई लोग शहरों की तरफ चले गए थे परंतु कुछ लोग स्वाला के नजदीक के ही अन्य गांवो में बस गए थे। कुछ लोगों का यह भी मानना है की यह सब बस भ्रम है परंतु कुछ लोग इस बात को सच मानते हैं। इन्ही कारणों की वजह से यह गांव भूतिया कहलाता है। [उत्तराखंड के भूतिया गांव]
जिला : पिथौरागढ़ : भतड़
Ghost villages of Uttarakhand: पिथौरागढ़ जिले में से लगभग साठ गांव अब भूतिया हो चुके हैं। यहां बड़े पैमाने पर लोग पलायन करने को मजबूर हैं। आज हम बात कर रहे हैं उन साठ गांव में से एक गांव की जिसका नाम है भतड़। इस गांव में भी एक समय था जब यहां पर बड़ी संख्या में लोग रहते थे। आंगनों में खुशहाली थी लोग खेती करके अपना जीवन यापन करते थे।लेकिन अब हालात ये है कि गांव वीरान हो चुका है। घर की टूटी हुई दीवारें ये कह रही हैं कि यहां कितनी मायूसी छाई हुई है।जिले के भतड़ गांव के पूर्व निवासी प्रकाश पांडे ने कहा- लोग बेहतर बुनियादी ढांचे और नौकरी के अवसरों की तलाश में राज्य के अन्य हिस्सों और बाहर पलायन कर चुके हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं की कमी भी स्थानीय लोगों को शहरी केंद्रों में जाने को मजबूर कर रही है। उन्होंने कहा कि इन गांवों में कृषि भूमि बंजर हो गई है और तेंदुए जैसे जंगली जानवर अक्सर घूमते पाए जा सकते हैं। ये गांव जंगल क्षेत्र में है इसलिए यहां जंगली जानवरों से जान का खतरा बना रहता है। साथ ही आवश्यक सुविधाएं इस गांव से कोसों दूर हैं। तो इन्ही सब कारणों की वजह से लोग गांव से चले गए हैं और गांव बंजर पड़ा है। [उत्तराखंड के भूतिया गांव]
जिला : पिथौरागढ़ : मटियाल गांव
Ghost villages of Uttarakhand: पिथौरागढ़ जिले का एक गांव मटियाल गांव इसकी कहानी बहुत ही रोमांचक है। लोगों ने इस गांव को भी बहुत पहले छोड़ दिया था और सभी अपनी अपनी सुविधाओं के अनुसार अलग अलग स्थानों पर चले गए थे। कुछ लोगों का मानना था की इस गांव में भूत हैं और कुछ लोग सुविधाओं के अभाव के कारण गांव छोड़ कर पलायन कर चुके थे। गांव को खाली हुए लगभग चार पांच साल हो गए थे। परंतु वर्ष 2020 में कोविड लॉकडाउन के समय दो युवा अपने भूतिया गांव लौटे। उनमें से एक मुंबई के एक रेस्तरां में काम करने वाला 34 वर्षीय विक्रम सिंह मेहता है तथा दूसरा पानीपत में ड्राइवर का काम करने वाला 35 वर्षीय दिनेश सिंह है। इन दोनो ने अपने गांव में रहने की ही ठानी। जून 2020 में जब वे गांव लौटे तो कई लोगों ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया। भूतिया गांव की भी बात कही। लेकिन, उन दोनों ने स्थिति में बदलाव लाने की ठान ली थी। जिद थी कि स्थिति को बदल देंगे। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से भूतिया गांव को फिर से ‘मटियाल गांव’ बना दिया।कोविड लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे दोनों युवाओं के सामने एक खाली गांव था। लेकिन, पानी की कमी नहीं थी। जमीन भी उपजाऊ थी। इसलिए उन्होंने अनाज और सब्जियों की खेती करने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 1.5 लाख रुपये का कर्ज लिया और उन्होंने इसका लाभ लिया। खेती ने मुनाफा दिया तो अब दोनों ने गाय, बैल और बकरियां खरीदी। गांव में पशुपालन का काम शुरू कर दिया। उनकी तरक्की को देख लोगों में भूतिया गांव का भ्रम टूटने लगा है। अन्य परिवार भी अब घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं। विक्रम सिंह मेहता बताते हैं कि मटियाल गांव में करीब दो दशक पहले तक 20 परिवार रहते थे। गांव में बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव ने लोगों को परेशान किया। रोजगार के साधन नहीं थे तो युवाओं ने नौकरी के लिए मेट्रो शहरों का रुख किया। वहीं, पड़ोस के गांव कोटली तक सड़क बनी तो बचे लोग वहां शिफ्ट हो गए। पांच साल पहले इस गांव से आखिरी परिवार भी चला गया। इसके बाद से यह गांव भूतिया बन गया। लोग गांव छोड़ गए तो यहां की जमीन बंजर हो गई। इसके बारे में भूतिया गांव का किस्सा प्रचलित हो गया। साथ ही विक्रम ने यह कहा कि जब हम गांव लौटे तो यहां के बारे में कई यादें थीं। पहले यहां लोग गेहूं, धान और सब्जियां उगाते थे। हमारे गांव में उपजाऊ जमीन और पर्याप्त सुविधांए थीं। इसलिए, जब हम 2020 में वापस आए तो हमने गांव की अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने का प्रयास किया। उन्हे सरकार की ओर से भी सुविधाएं दी गई।उत्तराखंड के बागवानी विभाग के सहायक विकास अधिकारी गौरव पंत ने कहा कि विक्रम मेहता और दिनेश सिंह को राज्य सरकार के एंटी-माइग्रेशन योजना के तहत सुविधा दी गई। राज्य सरकार ग्रामीण इलाकों से पलायन रोकने के लिए लगातार काम कर रही है। उन्होंने कहा कि मटियाल की पहचान एक पलायन प्रभावित गांव के रूप में की जाती है। मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना के तहत ऐसे गांव में वापस बसने वाले लोगों को सुविधा दिए जाने का प्रावधान है।सहायक विकास अधिकारी ने बताया कि उत्तराखंड में 50 फीसदी से अधिक पलायन वाले गांवों में लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दो युवाओं के जुनून का असर दिख रहा है। कोटली में जाकर बसे तीन अन्य परिवार भी अब वापस मटियाल लौट आए हैं। [उत्तराखंड के भूतिया गांव]
“उत्तराखंड के भुतहा गांवो की सूची: List of Ghost villages of Uttarakhand”
उत्तराखंड में भूतिया गांव उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन एक चिंताजनक मुद्दा है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से कई परिवार रोजगार और बेहतर शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में राज्य के भीतर या बाहर निकटतम कस्बों या शहरों में चले जाते हैं। कुछ गाँवों से लगातार हो रहे प्रवासन के परिणामस्वरूप वे गाँव पूरी तरह से वीरान हो गए हैं और उनमें कोई भी रहने वाली आबादी नहीं बची है। इन गैर आबाद गांवों को भुतहा गांव कहा जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 1048 गाँव शून्य जनसंख्या वाले हैं और अन्य 44 गाँवों की जनसंख्या 10 से कम है। प्रत्येक जिले के अनुसार उत्तराखंड में भुतहा गांवों की सूची निम्न है, गढ़वाल क्षेत्र में पौडी जिले और कुमाऊं क्षेत्र में अल्मोडा जिले में उत्तराखंड में सबसे अधिक भुतहा गांव हैं।
Ghost villages of Uttarakhand: उत्तराखंड के भूतिया गांव
जिला | भूत गांव |
अल्मोडा | 105 |
बागेश्वर | 73 |
चमोली | 76 |
चंपावत | 55 |
देहरादून | 17 |
हरिद्वार | 94 |
नैनीताल | 44 |
पौडीगढ़वाल | 331 |
पिथौरागढ | 103 |
रुद्रप्रयाग | 35 |
टेहरी गढ़वाल | 88 |
उधम सिंह नगर | 14 |
उत्तरकाशी | 13 |
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