हनोल (Hanol Temple) महासू देवता मंदिर | Mahasu Devta Temple

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Hanol Tample: हनोल एक प्रसिद्ध गांव है जो की उत्तराखंड में स्थित है। हनोल गांव उस गांव में स्थित महासू देवता मंदिर (Mahasu Devta temple) की वजह से लोक प्रसिद्ध है और यहां लोग दूर दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं। हानोल जौनसार बावर क्षेत्र में स्थित है।

Hanol Temple: हनोल एक प्रसिद्ध गांव है जो की उत्तराखंड में स्थित है। हनोल गांव उस गांव में स्थित महासू देवता मंदिर (Mahasu Devta temple) की वजह से लोक प्रसिद्ध है और यहां लोग दूर दूर से दर्शन करने के लिए आते हैं। हानोल जौनसार बावर क्षेत्र में स्थित है।

यह देहरादून से लगभग 180 कि मी दूरी पर स्थित है। हनोल गांव और महासू देवता का मंदिर टोंस नदी के तट पर स्थित हैं। हणोल या हनोल गांव का नाम हूण भट यानी हूण योद्धा के नाम पर रखा गया है। जो की एक पंडित थे। इससे पहले इस जगह का नाम चकरपुर था। हनोल गांव समुद्र तल से लगभग 1250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

!! “महासू देवता मंदिर” !! Mahasu Devta Temple Hanol

हनोल महासू देवता का मंदिर हूण राजवंश के ब्राह्मण मिहिरकुल हूण ने बनवाया है। यह मंदिर कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है। महासू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। दरअसल में महासू एक देवता नहीं, बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानिक भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। इन चारों महासू देवताओं के नाम है : बासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू), पबासिक महासू और चालदा महासू हैं, जो कि सारे ही भगवान शिव के ही रूप माने गए हैं। लोगों का मानना है की इस मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ है। पुरानी किताबों के माध्यम से लोग यह भी कहते हैं कि पांडवों ने भी माता कुंती के साथ कुछ वक्त इसी जगह पर बिताया था। इस मंदिर की जो आकृति है और निर्माण शैली है इसे उत्तराखंड के और मंदिरों से अलग एवं आश्चर्यजनक बनाती है। यह मंदिर धातु
और लकड़ी से बनी अलंकृत छतरियों से बना है।

!! “महासू देवता मंदिर से जुड़ी अनोखी कहानी” !! Mahasu Devta Temple Hanol

उत्तराखंड में लोक देवताओं से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें सबसे दिलचस्प कथा है हमारे देवता महासू की कथा जो की निम्न है :

हनोल गांव का पुराना नाम चकरपुर हुआ करता था और इसी गांव में एक ब्राह्मण भी रहते थे जिनका नाम था हूण भट। अगर लोककथाओं की मानें तो इस गांव के लोग एक राक्षस जिसका नाम किरमीर था उस से बहुत ही परेशान थे। वह राक्षस टोंस नदी के सामने एक तालाब में रहता था। वह गांव के लोगों को मारकर खाता था। गांव के लोग इस सब से बहुत परेशान थे। लोगों ने मिलकर राक्षस से एक समझौता किया। समझौते में यह था की गांव से हर महीने में एक व्यक्ति उस राक्षस के पास जायेगा और उसका निवाला बनेगा। हूण भट ब्राह्मण के सात पुत्र थे जिसमें से छः पुत्र राक्षस के हवाले कर दिए थे और एक पुत्र बचा हुआ था। अब अपने आखिरी पुत्र को बचाने के लिए हूण भट और उनकी पत्नी कुछ भी करने को तैयार थे। एक दिन हूण भट की पत्नी उस तालाब में पानी भरने के लिए गई तभी राक्षस उसके सामने आ गया। हूण भट की पत्नी आधे भरे हुए बर्तन को वहीं छोड़ कर अपने घर के तरफ दौड़ने लगी। कुछ समय के बाद जब वह अपने पति के साथ वापिस उस बर्तन को लेने के लिए गई तो उस बर्तन से एक भविष्यवाणी हुई कि अगर तुम अपने बेटे और गांव वालों को बचाना चाहती हो तो अपने पति को कश्मीर की तरफ प्रस्थान करने के लिए कहो। वहां पर महासू देवता विराजमान है, वहां जाकर के उन से विनती करो कि वह इस गांव में आए और इस राक्षस से सभी को मुक्ति दिलाएं। हूण भट यह सब सुनते ही कश्मीर की ओर निकल गए और वहां जाकर के महासू देवता से विनती की कि वह उनके गांव चकरपुर आकर उनकी मदद करें और राक्षस के चंगुल से उन्हें छुड़ाएं। महासू देवता से काफी विनती के बाद वह इस बात पर सहमति जताते हैं और हूण भट को कुछ चावल और फूल देते हैं, साथ ही साथ वह हूण भट को एक निश्चित समय और एक निश्चित स्थान बताते हैं कि तुम इस जगह पर इस खेत में हल लगाना और हम लोग वहां प्रकट हो जाएंगे। हूण भट वहां से लौट कर वापस आ गए परंतु हूण भट ने महासू देवता के बताए समय पर खेत में हल नहीं लगाया बल्कि उन्होंने उससे पहले ही हल लगा दिया। उन्होंने सोचा अगर मैं यह काम जल्दी कर दूंगा तो गांव वाले सभी किरमीर राक्षस से बच जाएंगे।

Hanol temple Mahasu Devta Temple Hanl mandir

महासू देवता चार भाई हैं जब हूण भट हल लगाने लगते हैं तो सबसे पहले सबसे बड़े भाई बासिक महासू प्रकट होते हैं तो वह हल उनके आंख में लग जाता है। तभी से यह मान्यता है कि उन्हें दिखता नहीं है। उसके बाद जब हल आगे चलता है तो बूठिया महासू (बौठा महासू) जी निकलते हैं। वह हल उनके पैर में लग जाता है तो बौठा महाराज जी चलने में असमर्थ हो जाते हैं तो उन्हें राजधानी संभालने का कार्यभार दिया गया है, इसीलिए उन्हें बौठा महाराज जी भी कहते हैं। यह अन्य देवताओं की तरह भ्रमण नहीं करते हैं। इसके बाद जब हल आगे को बढ़ता है तो तीसरे देवता पबासिक महासू प्रकट होते हैं और हल उनके कान में लगता है। तत्पश्चात चौथे देवता चालदा महासू प्रकट होते हैं। और यह देवता बिल्कुल सही तरीके से प्रकट होते हैं इन्हें कोई भी खरोच नही आती है। चालदा महासू भ्रमण शील देवता हैं। यह 12 साल हिमाचल क्षेत्र में रहते हैं और 12 साल जौनसार बावर क्षेत्र में रहते हैं।

!! “उत्तराखंड में कहां कहां हैं इन देवताओं के मंदिर” !! Hanol Uttarakhand

हनोल स्थित मंदिर चारों महासू भाइयों का मुख्य मंदिर है।बासिक महासू का मंदिर मैन्द्रथ नमक स्थान में है। बौठा महासू का मंदिर हनोल में स्थित है। पबासिक महासू का मंदिर टोंस नदी के दाएं तट पर बंगाण क्षेत्र में स्थित जनपद उत्तरकाशी के ग्राम ठडियार नामक स्थान पर होती है। चालदा महासू हमेशा जौनसार-बावर, फतह-पर्वत, बंगाण व हिमाचल क्षेत्र में ही प्रवास करते हैं। इनका मुख्य मंदिर टोंस नदी के पूर्वी तट पर हनोल गांव में स्थित है।

!! “मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य” !! Hanol Mandir

  1. पांडवों द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण : कहा जाता है की जब पांडव यहां पहुंचे थे तब मंदिर बहुत छोटा था तब पांडवों ने इसे बड़ा बनाने का सोचा। पांडवों ने शिवालिक पर्वत (घाटा पहाड़) से पत्थरों को इकट्ठा किया और देव शिल्पी विश्वकर्मा के साथ मिलकर हनोल मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर की चिनाई बिना गारे के हुई है। मंदिर में सिर्फ कटे हुए पत्थर लगे हुए हैं। इस मंदिर के 32 कोने हैं। मंदिर का एक बहुत सुंदर गर्भगृह भी है इसमें सबसे ऊपर एक विशालकाय पत्थर स्थापित किया गया है जो की माना जाता है भीम के द्वारा यहां लाया गया है। यह मंदिर अत्यधिक मनमोहक है।
  2. मंदिर प्रांगण में उपस्थित हैं दो गोले : महासू मंदिर हनोल के प्रांगण में सीसे के दो गोले भी उपस्थित हैं जो कि पांडु पुत्र भीम की ताकत से हमें परिचित कराते हैं। कहा जाता है कि भीम इन गोलों को कंचे के रूप में इस्तेमाल किया करते थे। यह दोनो गोले आकर में बहुत ही छोटे हैं परंतु यह बहुत भारी भी हैं। इन दोनो गोलों में एक का वजन लगभग 100 किलो के आसपास है और वहीं दूसरे के वजन लगभग 48 किलो है। बताया यह भी जा रहा है की यह समय के साथ साथ धीरे धीरे छोटे होते जा रहे हैं।
  3. गर्भगृह के रहस्य : महासू मंदिर के गर्भगृह में किसी भी भक्त जन को जाना मना है। वहां सिर्फ मंदिर के मुख्य पुजारी ही प्रवेश कर सकते है। इस गर्भगृह में एक ज्योति हमेशा जलती रहती है यह कभी भी बुझती नही है। इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में पानी की एक धारा भी आती है। यह धारा कहां से आती है और कहां जाती है इसका आज तक कोई भी पता नही लगा पाया है। यहां आए भक्तों को यही जल प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
  4. अन्य मंदिरों से भिन्न और विशिष्ट : महासू मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर गर्भगृह तक चार दरवाजे हैं। मुख्य द्वार की छत पर चंद्रमा,नवग्रह सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, मंगल, राहू व केतु की आकृति बनी हुई हैं। पहले और दूसरे दरवाजे पर माला के जैसे सभी देवी-देवताओं की आकृतियां बनाई गई हैं। दूसरे दरवाजे पर मंदिर के बाजगी ढोल-नगाड़े के साथ पूजा-पाठ में साथ देते है। मंदिर के तीसरे दरवाजे पर वहां के स्थानीय लोग, अन्य श्रद्धालु लोग मत्था टेकते हैं। सबसे आखिरी दरवाजे में गर्भगृह है जिसमें सिर्फ पुजारी को ही जाने की अनुमति है और वह भी पूजा के समय ही अंदर जाते हैं। !! "महासू के चार वीर" !!

हमारे जो चारों महासू हैं उनके चार वीर भी हैं जो की प्रसिद्ध हैं। इनमें कफला वीर (बासिक महासू) के वीर हैं, कैलू वीर (बूठिया महासू) के वीर हैं, गुडारु वीर (पबासिक महासू) के वीर हैं और सेकुड़िया वीर (चालदा महासू) के वीर हैं। इन चारों के भी जौनसार-बावर में चार छोटे-छोटे पौराणिक मंदिर स्थित हैं।।

Dehradun to Hanol Distance:

देहरादून से हनोल की दूरी लगभग 181 किलोमीटर है

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