हिमाचल की सर्दी | Emotional Story in Hindi

Sundriyal

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himachal ki sardi Emotional Story in Hindi

Emotional Story in Hindi

हिमाचल में बहुत ही सर्दी पड़ती है। हिमाचल प्रदेश हिमालय की ही श्रेणी में आता है तो वहां पर बहुत बर्फ पड़ती है। एक समय की बात है जब वहां पर बर्फ पड़ रही थी और बहुत तेज़ ठंडी हवाऐं भी चल रही थीऐसे मौसम में रात के समय में एक बूढ़ा व्यक्ति बाहर की सड़कों पर फटे पुराने कपड़े पहन कर घूम रहा था और उसके पैरों में। चप्पल या जूते कुछ भी नही थे। वह ठंड से थर थर काँप रहा था। वह हर घर के दरवाजे पर जा दरवाजा खटखटा रहा था परंतु उसकी सहायता के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा था। वह सबको घूमते घूमते यह आवाज लगा रहा था कि — “कोई मेहरबान है जो इस भूखे और सर्दी से ठिठुरते भिखारी को कुछ खाने को दे दे?”सभी लोगों ने सर्दी की वजह से अपने सारे खिड़की और दरवाजे बन्द कर रखे थे और अगर कोई उसकी आवाज सुनता भी तो सुनकर अनसुना कर देता था।चलते चलते अन्त में वह एक बहुत बड़े घर के सामने रुक गया और उस घर का दरवाजा खटखटा कर आवाज लगायी — “मेरे ऊपर दया करो, मैं ठंड से सिकुड़ रहा हूँ और बहुत भूखा भी हूँ।”उस घर का दरवाजा खुला और उसमें से एक स्त्री ने झाँका। वह स्त्री खूब गरम कपड़े पहने हुए थी पर उसकी शक्ल से लगता था कि वह अच्छे स्वभाव की नहीं थी।वह उस बूढ़े को गुस्से में बोली — “तुम्हें क्या चाहिये? मुझे बहुत काम है, बार बार दरवाजा क्यू पीट रहे हो?”बूढ़े ने कहा — “मेरे ऊपर दया करो, मैं बहुत भूखा हूँ। मुझे रोटी की खुशबू आयी तो मैं इधर चला आया।”स्त्री ने फिर बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा — “तो क्या वह रोटी मैं तुम्हारे लिये बना रही हूँ? वे रोटियाँ तो केवल मेरे अपने घर के लिये ही काफी हैं इसलिये मैं वे तुम्हें नहीं दे सकती।” और वह दरवाजा बन्द करके वहाँ से अन्दर चली गयी।बूढ़ा कुछ पल तो वहाँ खड़ा रहा और फिर वह वहाँ से यह कहता हुआ चला गया — “मैं इस घर को याद रखूँगा।”फिर वह बूढ़ा व्यक्ति यह कहता रास्ते पर चलने लगा — “कोई दयालु मेरे ऊपर दया करे, इस भूखे को खाना दे, मैं सरदी से ठिठुर रहा हूँ।” पर ठंड बहुत थी इसलिये सभी घरों के दरवाजे बन्द थे, सभी खिड़कियाँ बन्द थीं।

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आखिर में जब किसी ने भी अपना दरवाजा नही खोला तो उसने एक झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुला और उसमें से एक स्त्री ने बाहर देखा। उस स्त्री ने भी फटे पुराने कपड़े पहने हुए थे और उसके पैर भी नंगे थे। लेकिन वह स्त्री बहुत दयालु लग रही थी।जैसे ही उसने एक बूढ़े आदमी को ठंड से सिकुड़ते हुए देखा तो बोली — “अरे, आप इस समय बाहर कैसे? आइए आइए अन्दर घर में आ जाइए और रसोई में बैठ कर थोड़ी आग सेक लीजिए जिस से आपको थोड़ा गर्मी मिलेगी। बाहर तो बहुत ठंडा है।”उसने उस अजनबी बूढ़े आदमी का हाथ पकड़ा और उसे सहारा दे कर रसोई घर में ले गयी। वहीं उसके तीन बच्चे रात का खाना खाने के लिये बैठे हुए थे।उसने बच्चों से कहा — “बच्चो, इनको बैठने के लिये एक कुर्सी दो।” उसके तीनों बच्चे तुरन्त उठे और एक कुर्सी ला कर आग के पास रख दी।वह बूढ़ा आदमी उस कुर्सी पर बैठ गया और अपने हाथ पाँव गरम करने लगा। फिर बोला — “मैं बहुत भूखा हूँ।स्त्री ने एक लम्बी साँस ले कर कहा — “अफसोस, मेरे पास यही एक रोटी है। अगर यह रोटी खत्म हो गयी तो हमारे घर में और कुछ खाने को नहीं है।”बूढ़े आदमी ने फिर कहा — “मैं बहुत भूखा हूँ। मैंने कल रात से अभी तक कुछ भी खाना नहीं खाया है।”वह स्त्री अपने बच्चों से बोली — “बच्चों, तुम लोग सुन रहे हो। यह बूढ़े व्यक्ति हमसे भी ज़्यादा भूखे है। हम लोगों ने कम से कम रोटी का एक टुकड़ा सुबहे नाश्ते में तो खाया था परन्तु इन्होंने तो कल रात से कुछ भी नहीं खाया। क्या मैं इनको यह रोटी दे दूँ?”माँ की यह बात सुन कर बच्चों की आँखों में आँसू आ गये क्योंकि उन्होंने नाश्ते के बाद से कुछ नहीं खाया था और इस रोटी को इस अजनबी को देने के बाद तो फिर उनके पास खाने के लिये कुछ भी नहीं बचेगा।परन्तु तीनों बच्चों ने एक साथ कहा — “माँ, यह रोटी तो इनको मिलनी ही चाहिये क्योंकि ये हमसे ज़्यादा भूखे यह हैं।”माँ ने वह रोटी एक तश्तरी में रखी और अजनबी के सामने रख दी। अजनबी बहुत भूखा था सो उसने वह रोटी तुरन्त ही खा ली। फिर उसने अपना फटा कोट अपने शरीर के चारों ओर कस कर लपेटा और बोला — “मैं इस घर को याद रखूँगा। आपने मेरी इस बुरे समय में बहुत सहायता की है मैं किस प्रकार आपकी सहायता करूँ?”उस स्त्री ने जवाब दिया — “मेरे लिये आप भगवान से प्रार्थना करें कि मुझे कल कहीं काम मिल जाये क्योंकि जब तक मुझे कहीं काम नहीं मिलेगा तो मेरे बच्चों को रोटी नहीं मिलेगी।”उस बूढ़े ने कहा — “मैं अभी आपके लिये प्रार्थना करता हूँ कि आप कल सुबह जो भी काम शुरू करेंगी वह सारे दिन चलता रहेगा।” इतना कह कर वह बूढ़ा उठा और दरवाजा खोल कर बाहर चला गया।अगली सुबह तीनों बच्चे जल्दी उठ गये क्योंकि वह भूखे थे और खाने के लिये कुछ माँगने लगे। उस स्त्री ने एक आह भरी और बोली — “मेरे प्यारे बच्चों, तुम्हें मालूम है कि घर में जो कुछ भी था वह सब कल रात मैंने उस अजनबी को दे दिया था अब तो घर में कुछ भी नहीं है। पर हाँ, मेरी टोकरी में एक लाल रंग का कपड़ा पड़ा है। तुम वह ले आओ। उसे बेच कर मैं कुछ खाना खरीद कर लाती हूँ।”तीनों बच्चे एक साथ बोले — “पर वह तो आपके नये कोट का कपड़ा है माँ, और आपके लिये इस ठंड में कोट बहुत जरूरी है।”माँ बोली — “कोई बात नहीं बच्चों, तुम चिन्ता न करो। अभी तो तुम लोग नापने के लिये गज ले आओ ताकि यह पता चल सके कि वह है कितना।”एक बच्चा उठा और कपड़ा और गज दोनों ले आया और उस स्त्री ने उस कपड़े को नापना शुरू कर दिया।“एक गज़ दो गज़ तीन गज़ चार गज़ यह क्या? यह कपड़ा तो खत्म होने पर ही नहीं आ रहा और मुझे अच्छी तरह याद है कि यह कपड़ा तीन गज से ज़्यादा नहीं था। अभी कितना और है? पाँच, छह, सात, आठ गज। यह क्या हो रहा है? नौ, दस, ग्यारह, बारह गज। हे भगवान, हम पर दया करो, यह कपड़ा तो खत्म ही नहीं हो रहा। तेरह गज़ चौदह गज …।”ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कपड़ा अनगिनत गज लम्बा हो गया हो और खत्म होने पर ही न आ रहा हो। उसने सुबह यह काम शुरू किया था और दोपहर तक उसका वह छोटा सा कमरा उस लाल कपड़े के ढेर से भर गया।बच्चे खुशी से बाहर भागे और पड़ोसियों को इस बारे में खबर दी। पड़ोसी भी इस जादू को देखने आये और कपड़े के ढेर को देख कर आश्चर्य से बोले — “अरे तुम्हें इतना कपड़ा कहाँ से मिला?”स्त्री ने कोई जवाब नहीं दिया और उसके हाथ कपड़ा नापते रहे और नापते रहे। और यह काम सूरज डूबने तक चलता रहा और चलता रहा। उस समय तक उसकी छोटी सी झोंपड़ी उस खूबसूरत लाल कपड़े से भरी पड़ी थी।

महिला को याद आया कि कल जिस बूढ़े व्यक्ति को उन्होंने रोटी दी थी उसने कहा था कि जो भी काम शुरू करेगी वह खतम ही नही होगा और यह बात सच निकली। अब वे लोग गरीब नहीं रहे। उस लाल कपड़े को बेच कर उन्होंने बहुत धन कमाया और उस बूढ़े व्यक्ति को मन ही मन बहुत दुआएं दी।ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं। यह खबर उस बुरे स्वभाव वाली स्त्री के पास भी पहुँची जिसने उस बूढ़े को उस रात दुतकार कर भगा दिया था।उसने सोचा — “ओह, लगता है वह बूढ़ा आदमी कोई जादूगर था। अगर मैं उसे उस दिन उसे न भगा देती तो वह मुझ से भी यही कहता कि कल सुबह तुम जो काम भी शुरू करोगी वह सारा दिन चलता रहेगा।अगर अबकी बार वह इधर आया तो मैं उसे जितनी रोटी की जरूरत होगी उतनी दे दूँगी और फिर मैं देखती हूँ कि इस स्थान में मुझ से अमीर कौन होता है?”अब उसके दरवाजे और खिड़कियाँ हमेशा खुली रहतीं और वह भी सड़क पर हर आने जाने वाले पर नजर रखती। ठंड अभी भी बहुत थी पर धन के लोभ में वह अब अपने घर के दरवाजे खिड़कियाँ बन्द ही नहीं करती थी।

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आखिरकार एक शाम उसको उस बूढ़े की आवाज सुनाई दी — “कोई दयालु है जो मेरे ऊपर दया करे, इस भूखे और सर्दी से ठिठुरते भिखारी को खाना दे।”वह स्त्री तो इस ताक में ही बैठी थी कि कब वह भिखारी आये और कब वह उसको खाना खिलाये।सो जैसे ही उसने उस भिखारी की आवाज सुनी उसने तुरन्त ही उसको बुलाया और कहा — “आओ आओ, अन्दर आ जाओ। इसे अपना ही घर समझो। यह लो इस कुरसी पर बैठो और एक प्याला चाय पी कर थोड़ा गरम हो लो। बोलो मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकती हूँ?”वह बूढ़ा कुरसी पर बैठ गया और चाय पीता हुआ बोला —“मैं बहुत भूखा हूँ मुझे कुछ खाने के लिए दे दो।”“अरे तुम भूखे हो? यह लो रोटी, सब्जी, दाल, चटनी आदि और जितना चाहे उतना खाओ। चाहे मैं भूखी रह जाऊँ परन्तु मैं तुम्हें रोटी जरूर खिलाऊँगी।”उस रात बूढ़े ने बहुत अच्छा खाना खाया। खाना खा कर वह बोला — “बहुत बहुत धन्यवाद। मैं इस घर को याद रखूंगा।”स्त्री ने उत्सुकता से कहा — “और क्या?”बूढ़ा मुस्कुरा कर बोला — “मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि जो भी काम तुम कल सुबह शुरू करो वह सारा दिन चले।” यह कह कर वह बूढ़ा चला गया।जब वह बूढ़ा चला गया तो वह स्त्री खुशी से चीख पड़ी — “ओह, अब मैं क्या करूँ? हाँ, मैं कल सुबह से ही रुपए गिनना शुरू करती हूँ ताकि मेरा वह काम शाम तक चलता रहे। फिर उसने सोचा की पर मैं इतने सारे रूपये रखूँगी कहाँ? मुझे उनको रखने के लिये पहले से ही कुछ थैले बना लेने चाहिये। मैं कुछ कपड़ा काट लूँ, रात भर में मैं उस कपड़े से कुछ थैले सिल लूँगी, और सुबह तक वे मेरे पैसे रखने के लिये तैयार हो जायेंगे।”उसने एक कैंची ली और कुछ कपड़ा पास में रख लिया और थैले बनाने लगी। वह रात भर इसी काम में लगी रही। पहले वह थैले का कपड़ा काटती और फिर उसको सिलती। यह सब करते करते कब सुबह हो गयी उसको पता ही नहीं चला।एकाएक उसको लगा कि उसकी कैंची तो रुक ही नहीं रही थी। वह उसे रख भी नहीं पा रही थी बल्कि एक प्रकार से कैंची उसके हाथ से कह रही थी कि मुझे चलाओ।यह महसूस होते ही वह तो घबरा गयी — “ओह, यह क्या हो रहा है? यह तो मेजपोश कटा जा रहा है। कैंची, रुक जाओ।”पर कैंची थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी वह तो बस कपड़ा काटती ही जा रही थी, काटती ही जा रही थी।वह स्त्री घबराहट में चिल्लायी “ओ कैंची, रुक जाओ। अरे, मेरी कुरसी की गद्दियाँ परदे चादर सभी कट गये हैं। अरे कालीन भी, तकिये के गिलाफ भी। हे भगवान, अब मैं क्या करूँ।”पर कैंची थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी और घर में जो कुछ भी था वह सब काटती जा रही थी। इतने में ऊपर से उसका पति आया तो कैंची ने उसका कोट भी काटना शुरू कर दिया। वह अपनी पत्नी पर चिल्लाया “यह सब तुम क्या कर रही हो? यह मेरा कोट क्यों काट रही हो? रखो कैंची नीचे।”स्त्री रोती सी बोली — “मैं नहीं रख सकती। मुझसे यह कैंची रखी ही नहीं जा रही।” अब कैंची उसके पति की कमीज काट रही थी, फिर मोजे, फिर जूते। सुबह, दोपहर, शाम कैंची चलती रही और चलती रही और जब तक चलती रही जब तक रात नहीं हो गयी। और घर में जब तक सब कुछ कट गया तब कहीं जा कर वह कैंची रुकी।महिला को अपने लिए पर बहुत पछतावा हुआ और उसको समझ भी आ गया की इतना लालच करना भी ठीक नही होता है। भगवान जितना भी हमको देता हमको उसी में खुश रहना चाहिए। अधिक की मांग करोगे तो जितना पास है वो भी चला जायेगा।

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