एक बड़ा व्यापारी || Hindi Moral Stories ||

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एक नगर में मक्शूद नाम का एक बड़ा व्यापारी रहता था। उसका कारोबार दूर-दूर तक फैला हुआ था। वह बहुत ही ज्यादा अमीर था लेकिन वह अमीर होने के साथ साथ ही बहुत ज्यादा कंजूस भी था। वह हर एक चीज में एक-एक पैसा देखकर ही खर्च करता था।

मक्शूद ने अपने घर को ज्यादा बड़ा नही बनवाया था। उसके घर में वो और उसकी पत्नी अकेले रहते थे। उनकी कोई भी संतान नही थी। वह इतना कंजूस था कि वो भोजन में सूखी रोटी को सिर्फ एक सब्जी के साथ खाता था। वह ज्यादा कपड़े नही खरीदता था, घर के बने सीधे-सादे कपड़े पहनता था। उसके घर में कोई नौकर-चाकर नहीं थी। घर का सारा काम उसकी पत्नी स्वयं करती थी ।

मक्शूद को अगर कहीं भी जाना होता था तो वह कभी भी बैलगाड़ी या किसी अन्य वाहन की मदद नही लेता था बल्कि, वह हमेशा पैदल यात्रा करता था। नगर के सभी लोग जानते थे कि वह बहुत धनी है परंतु अत्यंत ही कंजूस है। लोगों ने उसका नाम मक्खीचूस रखा हुआ था।

उसकी जो भी आमदनी होती थी उससे वह सोने के सिक्के बनवा लेता। मक्शूद के घर के पीछे एक बड़ा बगीचा था । वह वहां रोज सुबह-शाम सैर करने के लिए जाता था। उसी बगीचे में एक बड़े पेड़ के नीचे उसने एक बड़ा-सा घड़ा मिट्टी में दबा कर रखा हुआ था । जो भी दौलत उसके पास आती वह उसको सोने के सिक्कों के रूप में उस मटके में डाल देता था।

उस समय लाइट नही हुआ करती थी तो लोग अपने अपने घरों में लालटेन और दिये वगेरह जला कर रखते थे। परंतु मक्शूद मियां इतने कंजूस थे की वह तेल बचाने के लिए शाम हो जाने पर घर में केवल एक ही दीया जलाता थे। अब अगर यदि उसे या उसकी पत्नी को घर के किसी दूसरे कोने में काम हो तो उसे वही दीया उठाकर ले जाना पड़ता था ।

मक्शूद ने अपनी जोड़ी हुई दौलत के बारे में किसी को भी नहीं बताया था। यहां तक कि उसकी अपनी पत्नी भी इस बारे में कुछ भी नही जानती थी कि उसका पति इतनी दौलत इकट्ठी कर रहा है। वह हमेशा यही समझती थी कि उसके पति का कारोबार मंदा चल रहा है जिस कारण से वे लोग इतना रूखा-सूखा भोजन खाकर रहते हैं और हर चीज में इतनी कटौती करते हैं।

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मक्शूद की पत्नी शबाना बहुत ही सीधी-सादी थी। वह अपने घर से बाहर नहीं निकलती थी। इस कारण वह यह भी नहीं जानती थी कि लोग उसके पति को कंजूस-मक्खीचूस नाम से पुकारते हैं। उसकी इच्छा होती थी कि वह नए-नए कपड़े पहने, आभूषण बनवाए परंतु, पति की आमदनी बहुत कम जानकर वह किसी भी चीज की फरमाइश अपने पति से नहीं करती थी।

अगर कभी किसी समय भोजन में सब्जी या रोटी बच जाती थी तो मक्शूद मियां उसको वह भोजन फेंकने न देता था। वह उसी बचे भोजन से दूसरे वक्त पेट भर लिया करता था । कंजूसी का आलम तो इतना था कि वह घर में जूते या चप्पल भी नही पहनता था और पत्नी को भी नही पहनने देता था। उसका कहना था कि – “जूते जितना कम पहनूंगा तो वह उतने ज्यादा समय तक मेरा साथ देंगे और वैसे भी घर में जूते-चप्पल की क्या जरूरत है ?

वह जब भी बाजार में नाई से बाल कटवाने के लिए जाता तो वह सारे बाल सफाचट करा कर आता ताकि उसे कम से कम 6 महीने तक नाई के पास दोबारा न जाना पड़े। घर के दरवाजों या खिड़कियों को तब तक बंद न करता, जब तक कि उनको बंद करने की बहुत ज्यादा जरूरत न होती थी, उसका विचार था कि बार-बार दरवाजा खोलने बंद करने से दरवाजों के जोड़ घिस जाते हैं । भीतर पहनने के कपड़े रोज नहीं धुलवाता था । उन्हें एक दिन एक तरफ से पहनता था तथा दूसरे दिन पलट कर दूसरी तरफ से ताकि साबुन का खर्च बचे।

वह हर रोज पैसा बचाकर कंजूसी करने की नई-नई तरकीब सोचा करता था । वह सुबह-शाम बगिया में टहलने जरूर जाता था । शबाना सोचती थी कि मक्शूद अपनी सेहत बनाने की खातिर बगीचे में जाता है, परंतु मक्शूद का कुछ अलग ही मकसद होता था। वह लगभग हर रोज धन रखने या उसे देखने के लिए बगीचे में जाता था। यदि संभव होता तो उन सिक्कों को गिन कर भी आता था। यदि कभी जल्दी में होता तो जमीन से मिट्टी हटा कर मटके में रखी अशर्फियों को निहारता, फिर बंद करके चला आता ।

यह सिलसिला काफी समय से चला आ रहा था। परंतु एक दिन एक चोर ने मक्शूद को बगीचे में पेड़ के नीचे धन छिपाते हुए देख लिया था। उसकी निगाह उस धन पर अटक गई और वह चोर रात होने का इंतजार करने लगा। रात होते ही चोर पूरे मटके की सारी अशर्फियां निकालकर नौ दो ग्यारह हो गया ।

सुबह को जब मक्शूद मियां बगीचे में सैर करने के उद्देश्य से पहुंचे तो उसका कलेजा धक् से रह गया। जहां पर उसका मटका था, वहां मिट्टी खुदी हुई थी और खाली मटका दिखाई दे रहा था।

मक्शूद ने सोचा कि जल्दी से घर जाकर पहले पत्नी, फिर पुलिस को इसकी खबर देता हूं, परंतु पैर थे कि दुख और घबराहट के मारे आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे । वह दो-चार कदम ही चला था कि बेहोश होकर गिर गया । जब बहुत देर तक वह घर नहीं पहुंचा तो उसकी पत्नी बगीचे में पहुंची।

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जैसे-तैसे उसने पड़ोसियों की सहायता ली और मक्शूद को घर लाया गया । सदमे के कारण वह बीमार पड़ गया । हर रोज वैद्य उसे देखने आता, परंतु दवा का कोई भी लाभ नहीं हो पा रहा था । उसने पत्नी को चोरी के बारे में बताया तो वह सुन कर सन्न रह गई । वह भी धन की चोरी की बात सुन कर दुखी रहने लगी ।

मक्शूद की बीमारी का हाल सुनकर उसका परम मित्र सलीम उससे मिलने आया। जब उसने मित्र की आपबीती सुनी तो वह समझ गया कि मक्शूद की बीमारी का कारण धन की चोरी का सदमा है । उसने तुरंत वैद्य का इलाज बंद करा दिया ।
सलीम मक्शूद से बोला कि – “तुम जानते थे कि तुमने धन कहां रखा है । यह बताओ कि तुम उस धन को क्यों इकट्ठा कर रहे थे
मक्शूद बोला – “अपने लिए ।”
सलीम बोला – “अपने लिए ? अपने लिए कैसे, तुम अपने लिए तो धन खर्च करते ही नहीं थे ।”

मक्शूद बोला – “मैं अपने भविष्य के लिए धन जोड़ रहा था, ताकि जब मैं बूढ़ा हो जाऊं तो वह धन मेरे काम आए और यदि इस बीच मुझे कोई संतान हो जाए तो संतान को मेरी सम्पत्ति और खजाना मिल जाए ।”
सलीम बोला – “जब तुम इस उम्र में उस धन का उपयोग नहीं कर रहे थे तो बुढ़ापे के लिए उसका मोह कैसा ? अच्छा, अब मेरा कहना मानो और भूल जाओ कि तुम्हारा धन चोरी हुआ है। जैसे रूखा-सूखा खाते थे, वैसा ही खाते रहो । जैसे सादे कपड़े पहनते थे, वैसे पहनते रहो ।”
मक्शूद मियां ने जल्दी से बात काटते हुए बोला -“यह कैसे हो सकता है ? मेरा धन तो चला ही गया, मैं कैसे शांत रह सकता हूं ?”

सलीम ने एक बार फिर अपने मित्र को समझाने का प्रयास किया – “मित्र, उस धन का तुम्हारे लिए कोई उपयोग नहीं था, वह बेकार ही था। अब वह धन तुम्हारे पास रहे या किसी और के, इससे क्या फर्क पड़ता है । हो सकता है कि वह चोर उस धन का गाड़ कर रखने के बजाय अपने परिवार के लिए खर्च करे ।”

अब तुम यह सोचो कि धन वहीं मटके में रखा है और यदि पहले जैसी जिंदगी बसर करना चाहो तो वैसी जिंदगी बसर करो और यदि तुम्हें इस चोरी से कुछ शिक्षा मिली हो तो आगे से जितनी कमाई करो, अपने व भाभी के सुख के लिए उस धन का उपयोग करो । कल किसी ने नहीं देखा है कि कल क्या होगा? पहली बात तो तुम्हारी कोई संतान ही नहीं है और यदि हो भी तो तुम क्यों उसके लिए जोड़ रहे हो। अगर तुम्हारी संतान लायक होगी तो खुद ही कमा कर खा लेगी । मुफ्त में मिली दौलत से तो संतान बिगड़ जाती है और उस धन को अय्याशी में बरबाद कर देती है।

मक्शूद को अपने मित्र की बात समझ में आने लगी । वह धीरे-धीरे चुस्त और स्वस्थ हो गया। उसे समझ में आ गया था कि जो मजा स्वयं पैसे खर्च करने में है, वह जोड़ कर रखने में नहीं । इसके बाद वह अपनी कमाई से उचित खर्च करके पत्नी के साथ सुख और आराम से दिन गुजारने लगा ।

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