[Hindi Moral Stories] बहुत पुरानी बात है। लगभग 18वी सदी की बात है। जब एक गांव में एक बहुत ज्ञानी पंडित रहा करता था। पंडित जी के साथ उनकी पत्नी पंडिताइन भी रहती थी। दोनो की एक ही संतान थी, वह भी एक पुत्री थी। पंडित अपने आस पास के सभी गावों में बहुत प्रख्यात था। उन पंडित के अलावा दूर- दूर तक कोई और पंडित नही था। इसीलिए कोई भी कार्य होता तो उन्ही को बुलाया जाता था। पंडित जी बहुत ही धनवान हो गए थे।पंडित जी ने अपना घर बहुत बड़ा बनवा रखा था। जिसमें की दोनो पति पत्नी ही रहा करते थे। उन्होंने अपनी बेटी की शादी करवा दी थी। पंडित जी ने बेटी का विवाह कोसों दूर रहने वाले एक श्रीमंत लड़के से करवाया था। पंडित जी बहुत ही ज्यादा विद्वान थे। वह हाथ देख कर या कुंडली देखकर ही बता देते थे की इसका भविष्य कैसा है क्या क्या होगा और क्या नही। पंडित जी ने शादि से पहले अपने होने वाले दामाद की अच्छे से जांच पड़ताल की थी। वह बहुत ही नेक इंसान था और साथ ही पंडित जी ने अपनी बेटी की कुंडली भी देखी थी और उसका भविष्य अच्छे से देखा था। पंडित जी ने बेटी की कुंडली में दोष पाया था। उन्होंने अपनी पुत्री की कुंडली को बहुत अच्छे से पढ़ा था। बेटी की कुंडली में जिंदगी में एक न एक बार दुख झेलना लिखा था। पुत्री भले ही किसी से भी शादी करती परन्तु उसकी जिंदगी में यह समय आना ही था और बिना इस समय को भुगते उसको छुटकारा मिलने वाला नही था।
पंडित जी की यह बात सौ आने सच निकली।
शादी के कुछ साल बाद ही पंडित जी का दामाद बुरी आदतों के चंगुल में फंस गया। उसे जुए और शराब की बुरी लत लग गई थी। इस आदत ने उन्हें सड़क पर लाकर रख दिया था। अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर पंडित जी की पत्नी काफी दुखी होती थी और अक्सर पंडित जी से कहा करती थी कि हमारी बेटी इतनी मुसीबत में है आप जाकर उनकी कुछ मदद करके आ जाओ ना। पंडित जी हमेशा अपनी पत्नी को टाल देते थे की मैने बेटी की कुंडली देखी है। भाग्यवान मैं उनकी कोई भी मदद कर लूं परंतु अभी कुछ समय तक उनका बुरा ही वक्त चलेगा मेरी मदद से उन्हे कोई भी मदद नही होगी। हम चाहे कितनी भी कोशिश कर ले परंतु, जो उनके नसीब में नहीं है वह उन्हें नहीं मिल पाएगा। जब उनका यह कठिन समय बीत जायेगा तो वह खुद ही सक्षम हो जायेंगे।पंडित जी की पत्नी उनकी ऐसी बातों पर भरोसा नही करती थी बल्कि, वह उनकी इन बातों को सुन कर काफी दुखी हो जाया करती थी और मन ही मन में सोचती थी कि,” यह कैसा स्वार्थी पिता है अपनी बेटी को इतने कष्टों में देखकर भी उसकी मदद करने के लिए मना करता है। आखिर भगवान ने जो इतना सारा धन धान्य दिया है भला यह उसका क्या करेंगे? वैसे भी हमारी इकलौती बेटी ही तो है जो है और हम दोनो का इस दुनिया में कोई है नही। अगर हम उसके बुरे वक्त में उसका साथ नही देंगे तो और कौन देगा और हम उसके लिए नही करेंगे तो किसके लिए करेंगे?पंडित जी अपनी पुत्री से बहुत प्यार करते थे परंतु वो सब जानते थे इसीलिए उन्होंने कुछ कदम नही उठाया। परंतु पंडिताइन को लगता था की पुत्री के पिता उस से प्यार नही करते।
अब पंडित जी की बेटी और दामाद खाने के लिए भी मोहताज हो चुके थे। उन दोनो ने सोचा की क्यू ना माता पिता से थोड़ी मदद ली जाए पर दोनो मदद मांगने से हिचकिचा भी रहे थे। वह इतने बेबस हो गए थे की उनके पास न खाने को कुछ था और न कुछ ढंग का पहन ने को। दोनो जब हिचकिचा रहे थे तो उन्होंने सोचा कि ऐसे फटे पुराने कपड़े देख माता पिता खुद ही समझ जायेंगे और उनकी कुछ सहायता कर देंगे।यह सोच कर पंडित जी की बेटी और दामाद एक दिन उनके घर पहुंच गए। उनके कपड़े देख कर उनकी लाचारी साफ नजर आ रही थी। उनकी पुत्री बहुत ज्यादा कमजोर भी हो गई थी। पंडित जी ने और उनकी पत्नी ने घर आए बेटी और दामाद का खूब आदर सत्कार किया और खूब अच्छा खाना खिलाया। बेटी और दामाद की पंडित जी से सहायता मांगने की हिम्मत तो हुई नही इसलिए वह उनसे बिना कुछ बोले ही वापस अपने घर को लौटने लगे। लेकिन मां तो मां होती है। पंडिताइन से रहा नहीं गया और उसने बिना पंडित जी की इजाजत से चोरी छुपे बूंदी के लड्डू बनाकर उसमें सोने के सिक्के रख दिए और बेटी और दामाद को चुप चाप दे दिए ताकि बेटी और दामाद की कुछ आर्थिक सहायता हो सके। पंडिताइन यह भी जान गई थी कि बेटी और दामाद शर्म के मारे उनसे मदद नहीं मांग रहे हैं इसलिए उसने बेटी और दामाद को लड्डुओं में छिपे सिक्कों के बारे में कुछ नहीं बताया।”पंडिताइन ने सोचा कि जब वो लोग घर पर जाकर लड्डू खाएंगे तो उन्हें उसमें सोने के सिक्के मिल ही जाएंगे इस तरह बिना उनके मांगे ही उन तक मदद पहुंच जाएगी” सोच कर पंडिताइन मन ही मन अपने बेटी की मदद करने के लिए खुश होने लगी।पंडित जी के दामाद और बेटी उन दोनों का आशीर्वाद लेकर अपने घर के तरफ रवाना हो गए। उनका गांव कोसों दूर था।दोनो के पास फूटी कौड़ी नहीं थी तो दोनो ने पैदल जाने का फैसला लिया। अब जब वह दोनो पैदल चल रहे थे तो पंडित जी की बेटी का पाव अचानक एक गड्ढे में पड़ा और उसका पाव मुड़ गया। अब उसके पास इतनी हिम्मत नहीं थी की वह एक कदम भी आगे बढ़ा पाए। पत्नी की यह हालत देख कर उसके पति ने वहां से लेकर और अपने गांव तक के लिए एक ताँगे की व्यवस्था करी।अब दोनो ताँगे में बैठ कर अपने गांव पहुंच गए। उतरने पर उनके पास पैसे तो थे नही तो पंडिताइन ने जो बूंदी के लड्डू दिए थे वह उन्होंने उस ताँगे वाले को दे दिए। ताँगे वाला बूंदी के लड्डू को लेकर वहां से चला गया। ताँगे वाला अपने घर की तरफ जा रहा था तो उसने सोचा की इतने से बूंदी के लड्डू से मेरे घर वालों का पेट तो भरेगा नही तो क्यों न मैं इनको बेच दूं और उन रुपयों से घर के लिए कुछ अनाज खरीद लूं। टांगेवाला यह बात सोच कर खुद से ही बात करने लगा की हां यह सही रहेगा। रास्ते में चलते चलते उसे एक हलवाई की दुकान दिखी और टांगे वाले ने बूंदी के लड्डू हलवाई को बेच दिए।अब क्या हुआ कि जिस गांव में वह हलवाई रहता था
उसी गांव में एक आदमी ने अपने घर पर पूजा रखवाई थी
उसी गांव में एक आदमी ने अपने घर पर पूजा रखवाई थी और उन्ही पंडित जी को वह पूजा करने के लिए बुलवाया था। पूजा में लगने वाले प्रसाद के लिए उस आदमी ने उसी हलवाई से बूंदी के लड्डू लिए जहां पर उस टांगे वाले ने बेचे थे। हलवाई ने भी उस आदमी को टांगेवाले से खरीदे हुए लड्डू ही बेच दिए क्योंकि वह नहीं जानता था कि यह लड्डू कब के बने होंगे। इसलिए हलवाई ने सोचा कि कहीं यह खराब ना हो जाएं तो उसने वही लड्डू दे दिए।अब पूजा खत्म होने पर जब पंडित जी दक्षिणा और बूंदी के लड्डू लेकर अपने घर आए और घर आकर खाना खाने के बाद जब वह प्रसाद में लाए बूंदी के लड्डू खाने लगे तो उन्हे लड्डू के भीतर सोने का सिक्का मिला। जब यह सब पंडिताइन ने देखा तो पंडिताइन की आंखों से आंसू बहने लगे। पंडित जी ने जब पंडिताइन से उसके रोने का कारण पूछा तो पंडिताइन ने पंडित को सब कुछ बताया और पंडित जी से उनकी बातों पर भरोसा ना करने के लिए माफी मांगी। पंडित जी ने पंडिताइन के आंसू पोछे और कहा कि तुम्हारी तरह मैं भी हमारी बेटी को बहुत प्रेम करता हूं। लेकिन अगर हम उसकी अब मदद करते हैं तो दामाद हमसे हमेशा ऐसे ही मदद की अपेक्षा रखेगा और अपनी बुरी आदतों को कभी नहीं छोड़ेगा। पंडिताइन भी अब पंडित जी की बातों से सहमत हो गई।दो-तीन महीने बीत गए। पंडित जी के दामाद और बेटी फिर से एक बार उनके घर आए और इस बार उनकी परिस्थिति पहले से बेहतर थी क्योंकि पिछली बार खाली हाथ जाने के बाद दामाद ने नया काम शुरू किया था और अपनी सारी बुरी आदतें भी छोड़ दी थी । अब पंडित जी और पंडिताइन भी सुख से रहने लगे और उनके दामाद का काम अच्छा चलने लगा तो बेटी और दामाद भी सुख से रहने लगे।
कभी हार मत मानो, क्योंकि यही वह स्थान और समय है जब स्थिति बदल जाएगी।
@divyasundriyal