भाग्य का निर्माण
हमे क्या बनना है और कितनी उचाई तक जाना है, अपने भाग्य का निर्माण स्वयं ही करना है। सब कुछ हमारे हाथ में ही है। संकल्प करो और अपनी शक्ति लगा दो । आप जो चाहोगे, आपको सब कुछ मिल जायेगा। आवश्यकता है तो धैर्य की, साहस की और समय की।
जब आप ईमानदारी से इस पर पूरा-पूरा अमल करेंगे, तो आप कुछ भी पा सकते हैं। मनुष्य क्या नहीं कर सकता।
ईमानदारी के साथ कभी आपने इस प्रश्न पर सोचा है ? विचार किया है ? नहीं किया तो कीजिये।
सफलता कैसे प्राप्त करे
मनुष्य ही संसार के सभी प्राणियों में एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसे ईश्वर या प्रकृति ने सब कुछ दिया है। वह अपने प्रकृति गुणों के अलावा भी अपने कौशल के द्वारा औरों के गुण अपना सकता है। उदाहरणतया जैसे मछलियां पानी में तैर सकती हैं, मनुष्य में यह गुण जन्मजात नहीं होता। फिर भी वह तैरना सीख लेता है। उड़ना पक्षियों का धर्म है, पर मनुष्य भी हवाई जहाज बनाकर उड़ना सीख गया है। इस प्रकार मनुष्य को प्रकृति ने कुछ इस प्रकार का बनाया है कि वह सब कुछ कर सकता । अतः जब प्रकृति से प्राप्त सुविधा का लाभ हम स्वयं नहीं उठाते हैं, तो हमारे जैसा मूर्ख और कौन हो सकता है ?
प्रकृति ने हमको सब कुछ दिया है। यह हमारी अपनी कमजोरी है कि हम पहचान नहीं पाते, वरना हम जो भी चाहते हैं, वह हमारे आसपास, हमारे चारों ओर है।
“इस दुनिया में सब कुछ है। जो चाहो सो पाओ, पर उस योग्य अपने को बनाओ।”
जो कर्महीन हैं, वह नहीं पाते हैं।” सचमुच यह एक सचाई है।
आपको क्या चाहिए ?
इस पर विचार कीजिये । फिर गम्भीरतापूर्वक उसके लिये योजना बनाइए । योजना बनाकर उस पर अमल कीजिये। बराबर प्रयत्नशील रहिये। एक दिन आप अपनी इच्छापूर्ति करके रहेंगे। आप जो चाहोगे वो आपको मिल जायेग।
यदि हमारे विचारों में सामजंस्य, समन्वय, उचित नाप-तौल नहीं है, तो हमारा शरीर अवश्य अस्वस्थ होगा और इसका प्रभाव हमारे कार्य तथा जीवन पर दिखाई देगा। हम स्वस्थ होंगे तब ही हम कुछ कर पाने में सफल हो पाएंगे। बहुत से व्यक्ति इसको पढ़कर वर्ष भर में अपने विचारों-प्रवृत्तियों चेष्टाओं तथा कार्यों में परिवर्तन कर डालते हैं और वह अपना जीवन सुधार-संवार लेते हैं, पर कुछ असावधान लोग इसको या तो पढ़ते ही नहीं या इसे पढ़कर भी भुला देते हैं और अपना जीवन बिगाड़ देते हैं। अपने विचारों को सर्वथा बदलें, उन्हें उदात्त, पवित्र, हर्षमय तथा रचनात्मक बनाएं। आपका जीवन ही बदल जायेगा। यदि हम सतत विकासमान हैं, तो हमारी शक्तियां क्षीण नहीं हो सकतीं।
जिस प्रकार घर का कूड़ा प्रतिदिन झाड़ू से साफ करना पड़ता है, उस प्रकार मन के कूड़े को भी प्रतिदिन साफ करें। निरन्तर नये विचार, आगे बढ़ने के विचार, प्रगति के विचार, उन्नति के विचार मन में लायें। तब हममें शक्तियों के क्षीण करने की क्रिया स्वयं समाप्त हो जाएगी।
हमारे मन तथा शरीर में निरन्तर विकास की क्रिया जारी रहना स्वाभाविक है। इसमें बाधा तब पड़ती है जब दूषित विचार हमारे मन पर आक्रमण करते हैं। मन पर दूषित विचारों का आक्रमण तभी होता है, जब हमारे मन में खालीपन होता है। जब तक अपने मन में विकास के विचार रखते हैं, तब तक अवनति के विचार नहीं आ सकते, प्रगति के विचार हैं, तो अवनति के विचार नहीं आ सकते।
अतः हम लगन, परिश्रम और दृढ़ निष्चय से सफलता पा सकते है।