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Kafal Fruit: “उत्तराखंड का राजकीय फल – काफल”
गर्मियों के मौसम में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में फलों की बहार आ जाती है। पेड़ों पर मौसम के हिसाब से मौसमी फल लगना शुरू हो जाते हैं, उन्ही के समान काफल भी मौसमी फलों में से एक है। यह पेड़ फल तो देता ही है साथ ही साथ यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। जिसे उत्तराखंड में खूब गुनगुनाया जाता है।
“काफल के फल एवम पेड़ के फायदे”
काफल एक ऐसा फल है जो जिसने भी खाया उसको खूब पसंद आया है। काफल का नाम सुनते ही मुंह में पानी आने लगता है। उत्तराखंड में होने वाला यह फल बहुत ही स्वादिष्ट होता है। यह गर्मियों में यानी अप्रैल,मई के महीने से पकना शुरू हो जाते हैं और जून जुलाई तक रहते हैं। काफल उत्तराखंड का राज्य फल भी है। उत्तराखंड के लोग काफल को हल्का सा तेल तथा घर के बने हुए नमक के साथ बड़े के चाव से खाते हैं। काफल एक छोटा गुठलीयुक्त बेरी नुमा फल है जो की पेड़ों पर गुच्छों के समान लगता है। यह फरवरी,मार्च के महीने से लगना शुरू हो जाते हैं पर तब यह कच्चे रहते हैं समय के साथ यह पकने लगते हैं। यह पकने के बाद बहुत ही लाल हो जाते हैं। समय के साथ यह हरे से लाल तथा लाल से गहरा लाल या काला हो जाता है फिर ही इस फल को खाते हैं। काफल बहुत ही रसीला होता है। यह खट्टा मीठा फल है जो की बहुत स्वादिष्ट होता है। इसके अंदर छोटी घुठली भी होती है जिसको कई लोग तो खा जाते हैं परंतु कई लोग नही खाते हैं। गुठली को खाने से कोई भी नुकसान नही होता है।
वहीं ये पेड़ भरपूर अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। दांतुन बनाने व अन्य चिकित्सकीय कार्यों में इसकी छाल का प्रयोग किया जाता है। साथ ही काफल खाने से स्ट्रोक और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
Kafal से संबंधित कहानी: स्वाद और औषधीय गुणों से युक्त काफल से जुड़ी एक मार्मिक कहानी भी है जिसे उत्तराखंड में खूब गुनगुनाया जाता है।
“नहीं माँ: काफल पाको मैंल नी चाखो” Emotional Story in Hindi
कई साल पहले की बात है उत्तराखंड के एक गांव में एक महिला अपनी बेटी के साथ रहती थी। दोनों एक दूसरे का एक मात्र सहारा थी। मां खेतों में काम करती थी और किसी तरह घर का खर्चा उठाती थी। ऐसे में गर्मियों के मौसम में जब पेड़ों पर काफल पक जाते थे तो महिला जंगल जाकर काफलों को तोड़कर लाती थी और बाजार में बेचा करती थी।
एक दिन जब महिला जंगल से काफल तोड़कर लाई तो उसकी बेटी का मन काफल खाने का करने लगा। लेकिन मां ने काफल बेचने थे तो बेटी से काफल बेचने की बात कहकर उसे काफलों को छूने से भी मना कर दिया। महिला काफलों की टोकरी को बाहर आंगन में एक कोने में रख कर खेतों में काम करने चली गई और बेटी से काफलों का ध्यान रखने के लिए कह गई।
दिन में जब धूप ज्यादा बढ़ने लगी तो काफल धूप में सूख कर कम होने लगे। क्योंकि काफलों में पानी की मात्रा अत्यधिक होती है तो जिस कारण वह धूप में सूख से जाते हैं और ठंड में फिर से फूल जाते है। महिला जब खेत से घर पहुंची तो बेटी सोई हुई थी। मां थोड़ी देर थकान दूर करने के लिए बैठी तभी उसे काफलों की याद आई। उसने आंगन में रखी काफलों की टोकरी देखी तो उसे काफल कुछ कम लगे। गर्मी में काम करके और भूख से परेशान वह चिड़चिड़ी हुई थी तभी काफल कम दिखने पर उसे और ज्यादा गुस्सा आ गया। उसने अपनी सोई बेटी को उठाया और गुस्से में पूछा कि काफल कम कैसे हुए ? तूने खाए हैं न सच सच बता?
तभी बेटी बोली, नहीं मां, मैंने तो चखे तक नही हैं। पर मां ने उसकी एक नही सुनी। उसने बेटी की पिटाई शुरू कर दी। बेटी रोते-रोते कहती गई कि मैंने नहीं खाए पर मां ने उसकी एक नहीं सुनी। इतनी मार खाने के बाद बेटी अधमरी सी हो गई और कुछ देर में उसकी मृत्यु हो गई।
धीरे धीरे जब शाम हुई तो काफल अपने पहले वाले रूप में आ गए फिर उसकी मां को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने बेटी को गोद में उठा कर माफी मांगनी चाही, उसे खूब सहलाया, सीने से लगाया लेकिन बेटी के प्राण जा चुके थे। मां तिलमिला उठी और पश्चाताप के लिए उसने अपने भी प्राण त्याग दिए।
कहा जाता है कि वे दोनों मां-बेटी मरने के बाद पक्षी बन गए और जब भी पहाड़ों में काफल पकते हैं तो एक पक्षी बड़े करुण भाव से गाता है – काफल पाको मैंल नी चाखो (काफल पके हैं, पर मैंने नहीं चखे हैं) और तभी दूसरा पक्षी चीत्कार करता है – पुर पुतई पूर पूर (पूरे हैं बेटी पूरे हैं)। बताया जाता है की यह एक सच्ची घटाना है।
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