Moral Stories in Hindi: नरेंद्र नगर का एक राजा था। उसका नाम सुमन देव था। वह बहुत ही पराक्रमी एवं शक्तिशाली था । वह बहुत बड़े नगर का राजा था। उसका राज्य भी धन-धान्य से पूर्ण था । राजा की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी ।
एक बार नरेंद्र नगर में एक ज्योतिषी पधारे । उनका नाम था महर्षि भृगव। उनकी ख्याति बहुत दूर दूर तक फैली हुई थी। लोगों का मानना था कि वह बहुत ही पहुंचे हुए ज्योतिष हैं और किसी के भी भविष्य के बारे में सही-सही बता सकते हैं । वह नगर के बाहर एक छोटी कुटिया में ठहरे हुए थे ।
उनकी भी इच्छा थी की वह राजा से एक बार अवश्य मिलें। उन्होंने राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की और राजा से मिलने की अनुमति उन्हें मिल गई । अपने राज दरबार में राजा ने उनका हार्दिक स्वागत किया । कुछ समय बाद जब ज्योतिषी वहां से जा रहे थे तो राजा ने उन्हें कुछ हीरे-जवाहरात देकर विदा करना चाहा। परंतु, ज्योतिषी ने यह कह कर मना कर दिया कि वह सिर्फ अपने भाग्य का खाते हैं । राजा की दी हुई दौलत से वह अमीर नहीं बन सकते ।
राजा ने पूछा – “इससे आपक क्या तात्पर्य है गुरुदेव ?”
तब ज्योतिषी ने कहा कि – “कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत और मेहनत से गरीब या अमीर होता है । यदि कोई भी राजा किसी को अमीर बनाना चाहे तो भी नहीं बना सकता है। राजा की दी हुई दौलत भी उसके हाथ से निकल जाएगी ।”
यह सुनकर राजा को अत्यधिक क्रोध आ गया ।
राजा ने कहा-“गुरुदेव ! आप किसी का भी हाथ देखकर यह बताइए कि उसकी किस्मत में अमीर बनना लिखा है या गरीब, मैं उसको उलटकर दिखा दूंगा ।”
इस पर ज्योतिषी ने कहा- “ठीक है, आप ही किसी व्यक्ति को बुलाइए, मैं बताता हूं उसका भविष्य और भाग्य ।”
राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और चुपचाप कुछ आदेश दिया और कुछ ही क्षणों में एक सजा-धजा नौजवान ज्योतिषी के सामने हाजिर हो गया। ज्योतिषी भृगव ने ध्यान से उस व्यक्ति का माथा देखा फिर हाथ देखकर कहा – “यह व्यक्ति गरीबी में जन्मा है और जिन्दगी भर यह गरीब ही रहेगा । इसे खेतों और पेड़ों के बीच कुटिया में रहने की आदत है और वहीं रहेगा ।”
राजा सुमन देव यह सब सुनकर हैरत में पड़ गया, बोला कि – ” गुरुदेव आप ठीक कहते हैं।यह सजा-धजा नौजवान महल के राजसी वस्त्र पहनकर आया है, परंतु वास्तव में यह महल के बागों की देखभाल करने वाला गरीब माली ही है । परंतु गुरुदेव एक वर्ष के भीतर मैं इसे अमीर बना दूंगा । यह जिन्दगी भर गरीब नहीं रह सकता है ।”
राजा का घमंड देखकर ज्योतिषी ने कहा – “ठीक है, आप स्वयं आजमा लीजिए, मुझे आज्ञा दीजिए ।” और ज्योतिषी भृगव नरेंद्र नगर से चले गए ।
राजा ने अगले दिन माली मनोज को बुलाकर एक पत्र दिया और साथ में यात्रा करने के लिए कुछ धन दिया । फिर उससे कहा – “यहां से सौ कोस दूर किशनपुर में मेरे परम मित्र राजा प्रताप रहते हैं, वहां जाओ और यह पत्र उन्हें दे आओ ।”
सुनकर मनोज का चेहरा लटक गया । वह पत्र लेकर अपनी कुटिया में आ गया और सोचने लगा यहां तो पेड़ों की थोड़ी-बहुत देखभाल करके दिन भर आराम करता हूं । अब इतनी गर्मी में इतनी दूर जाना पड़ेगा ।
परंतु राजा की आज्ञा थी, इसलिए अगले दिन सुबह जल्दी उठकर वह नरेंद्र नगर से पत्र लेकर निकल गया । दो गांव पार करते-करते वह बहुत थक चुका था और धूप बहुत तेज लगने लगी थी । इस कारण उसे भूख और प्यास भी जोर की लगी थी । वह उस गांव में बाजार से भोजन लेकर एक पेड़ के नीचे खाने के लिए बैठ गया । अभी उसने आधा ही भोजन किया था कि उसका एक अन्य मित्र, जो खेती ही करता था, मिल गया ।
मनोज ने अपनी परेशानी अपने मित्र दयाल को बताई । सुनकर दयाल हंसने लगा। बोला – “इसमें परेशानी की क्या बात है ? राजा के काम से जाओगे, खूब आवभगत होगी । तुम्हारी जगह मैं होता तो खुशी-खुशी जाता ।” यह सुनकर मनोज का चेहरा भी खुशी से खिल उठा, “तो ठीक है भैया दयाल, तुम ही यह पत्र लेकर चले जाओ, मैं एक दिन यहीं आराम करके वापस चला जाऊंगा ।”
दयाल ने खुशी-खुशी वह पत्र ले लिया और दो दिन में वह सुखी नगर पहुंच गया । वहां का राजा प्रताप था । दयाल आसानी से राजा प्रताप के दरवाजे तक पहुंच गया और उसने सूचना भिजवाई कि नरेंद्र नगर के राजा का दूत आया है । उसे तुरंत अंदर बुलाया गया ।
दयाल की खूब आवभगत हुई । दरबार में मंत्रियों के साथ उसे बिठाया गया। जब उसने राजा प्रताप को पत्र दिया तो राजा प्रताप ने पत्र खोला । पत्र में लिखा था – “प्रिय मित्र, यह बहुत योग्य एवं मेहनती व्यक्ति है । इसे अपने राज्य में इसकी इच्छानुसार चार सौ एकड़ जमीन दे दो और उसका मालिक बना दो । यह मेरे पुत्र समान है । यदि तुम चाहो तो इससे अपनी पुत्री का विवाह कर सकते हो । वापस आने पर मैं भी उसे अपने राज्य के पांच गांव इनाम में दे दूंगा ।”
राजा प्रताप को लगा कि यह सचमुच में एक योग्य व्यक्ति है, उसने अपनी पुत्री व पत्नी से सलाह करके पुत्री का विवाह दयाल से करा दिया और जब वह वापिस लौट रहा था तो उसे ढेरों हीरे-जवाहारात देकर विदा किया ।
उधर, आलसी मनोज थका-हारा अपनी कुटिया में पहुंचा और जाकर सो गया । दो दिन तक वह सोता रहा । फिर सुबह उठकर पेड़ों में पानी देने लगा । सुबह जब राजा अपने बाग में घूमने निकले तो मनोज से उस पत्र के बारे में पूछा ।मनोज ने डरते-डरते सारी बात राजा को बता दी ।
राजा को बहुत क्रोध आया और साथ ही ज्योतिषी की भविष्यवाणी भी याद आई । परंतु राजा ने सोचा कि कहीं भूल-चूक भी हो सकती है । अत: वह एक बार फिर प्रयत्न करके देखेगा कि मनोज को धनी किस प्रकार बनाया जाए ? तीन-चार दिन बाद मनोज राजा का गुस्सा कम करने की इच्छा से खेत से बड़े-बड़े तरबूज तोड़कर लाया । और बोला – “सरकार, इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है । देखिए, खेत में कितने बड़े-बड़े तरबूज हुए हैं । राजा खुश हो गया । उसने चुपचाप अपने मंत्री को इशारा कर दिया । मंत्री एक बड़ा तरबूज लेकर अंदर चला गया और उसे अंदर से खोखला कर उसमें हीरे-जवाहारात भरवाकर ज्यों का त्यों चिपकाकर ले आया ।
राजा ने मनोज से कहा – “हम आज तुमसे बहुत खुश हुए हैं । तुम्हें इनाम में यह तरबूज देते हैं ।”
सुनकर मनोज का चेहरा फिर लटक गया । वह सोचने लगा कि राजा ने इनाम दिया भी तो क्या ? वह बड़े उदास मन से तरबूज लेकर जा रहा था, तभी उसका परिचित रोशन मिल गया । वह बोला – “क्यों भाई, इतने उदास होकर तरबूज लिए कहां चले जा रहे हो ?”
मनोज बोला – “क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है । आज राजा मुझसे खुश हो गए, पर इनाम में दिया भी तो क्या यह तरबूज । भला तरबूज भी इनाम में देने की चीज है ? मैं किसे खिलाऊंगा इतना बड़ा तरबूज ?”
रोशन बोला – “निराश क्यों होते हो भाई, इनाम तो इनाम ही है । मुझे ऐसा इनाम मिलता तो मेरे बच्चे खुश हो जाते ।”
“फिर ठीक है, तुम्हीं ले लो यह तरबूज ।” और मनोज तरबूज देकर कुटिया पर आ गया ।
अगले दिन राजा ने मनोज का फिर से वही फटा हाल देखा तो पूछा – “क्यों, तरबूज खाया नहीं ?”
मनोज ने सारी बात चुपचाप राजा को बता दी । राजा को मनोज पर बड़ा ही क्रोध आया ? पर वह कर भी क्या सकता था ।
अगले दिन मनोज ने रोशन को बड़े अच्छे-अच्छे कपड़े पहने बग्घी में जाते हुए देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । मनोज ने अचानक उस से धनी बनने का राज पूछा तो उसने तरबूज का किस्सा बता दिया । सुनकर मनोज हाथ मलकर रह गया । तभी उसने देखा कि किसी राजा की बारात – सी आ रही है । उसने पास जाकर पता किया तो पता लगा कि कोई राजा अपनी दुल्हन को ब्याह कर ला रहा था । ज्यों ही उसने राजा का चेहरा देखा तो उसके हाथों के तोते उड़ गए । उसने देखा, राजसवारी पर दयाल बैठा था । अगले दिन दयाल से मिलने पर उसे पत्र की सच्चाई पता लगी, परंतु अब वह कर ही क्या सकता था ?
राजा ने भी किस्मत के आगे हार मान ली और सोचने लगा – ‘ज्योतिषी ने सच ही कहा था, राजा भी गरीब को अमीर नहीं बना सकता है, यदि उसकी किस्मत में गरीब रहना ही लिखा है ।’
कहानी का सिद्धांत: भाग्य का महत्व समझना। Moral of the Story
जीवन में हमारे अधिकांश घटनाओं को हम खुद नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, इसे हमारा भाग्य निर्धारित करता है। कभी-कभी हम चाहकर भी जो कुछ होता है, वही हमारे भाग्य में लिखा गया होता है। यह संदेश हमें यह बताता है कि हमें अपने भाग्य को स्वीकारने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारी भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली स्थितियाँ केवल हमारी सोच और प्रयासों पर निर्भर नहीं होती हैं। हमें आपातकाल में धैर्य, संतुलन, और समर्पण का आदर्श बनाना चाहिए। हमें अपने भाग्य के साथ सहजता से सहयोग करना चाहिए और जीवन के प्रत्येक मोड़ पर उच्च और नीच भावनाओं को स्वीकारना चाहिए।
इसके साथ ही, हमें अपने भाग्य को स्वीकार करने के साथ साथ कर्म करने का भी जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए। हमारे प्रयास, कठिनाइयों के मुकाबले, हमें सफलता के मार्ग में आगे बढ़ा सकते हैं। इसलिए, भाग्य के अतिरिक्त, हमें अपने उद्देश्यों की ओर निरंतर प्रगति करने के लिए अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।