किताब समीक्षा: राग दरबारी – श्रीलाल शुक्ल
Raag Darbari साल 1964 अपने अंतिम पड़ाव में था तो दूसरी तरफ श्री लाल शुक्ल कालजयी उपन्यास “रागदरबारी” की रचना शुरू कर रहे थे | ग्रामीण जीवन जीने वाले लोगो के की मानसिक मूल्यहीनता का सजीव चित्रण करते हुए यह उपन्यास अपने अंतिम रूप में साल 1967 में पहुंचा और 1969 में इसका प्रकाशन हुआ |
राग दरबारी उपन्यास में कई अद्भुत पात्र हैं जो अपनी भूमिका बहुत कुशलता से निभा रहे हैं। प्रमुख पात्र जिन्होंने उपन्यास को जीवंत बना दिया ।
राग दरबारी (Raag Darbari) मुख्य पात्र
वैद्यजी | वह गांव की राजनीति का चतुर राजनीतिज्ञ तथा स्थानीय इंटर कॉलेज के प्रबंधक हैं और कोआपरेटिव सोसाइटी चलाते हैं। |
रामाधीन | रामाधीन का पूरा नाम रामधीन भीखमखेड़वी था इसका आस पास के अवैध धंधों पर एकाधिपत्य था। सारे गैरकानूनी काम करता हैं और कहता हैं “इस बारे मे मै क्या कर सकता हूँ? कानून मुझसे पूछकर तो बनाया नही गया था। “ |
रुप्पन बाबू | स्थानीय नेता और वैद्यजी के छोटे बेटे , सभी को एक निगाह से देखने वाले चाहे दरोगा हो या चोर, नक़ल करने वाला विद्यार्थी या कॉलेज के प्रिंसिपल साहब | |
बद्री पहलवान | वैद्यजी के बड़े बेटे और अपने पिता के सलाहकार और आदेशों के पालनकर्ता हैं। वे खुद को बॉडी-बिल्डिंग एक्सरसाइज में व्यस्त रखते हैं। |
रंगनाथ | शहर का पढ़ा हुआ एक नौजवान और वैद्य जी का भांजा है | वह शहर में बीमार हो गया था तो अपनी तंदरुस्ती बनाने गांव में आया हैं । |
प्रिंसिपल साहिब | छंगामल इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल हैं, स्टाफ के अन्य सदस्यों के साथ उसका संबंध साजिशपूर्ण रहता है। |
जोगनाथ | स्थानीय गुंडा और नशे का आदी , हर काम को मारपीट से सुलझाने वाला |
सनीचर | सनीचर का असली नाम मंगल हैं और उसका पेशा वैद्य जी के बैठक पैर बैठे रहना हैं । |
लंगड़ | भ्रष्ट व्यवस्था द्वारा शिकार किया गया एक आम आदमी । |
समीक्षा: राग दरबारी (Raag Darbari)
यह उपन्यास इन्ही मुख्य पत्रों के आस पास ही नहीं घूमता है बल्कि अन्य पत्रों को भी समान अहमियत देता है। यह उपन्यास शिवपालगंज गाँव की राजनीति का चरित्र चित्रण करता हैं |
वैद्यजी और रामाधीन भीखमखेडवी शिवपालगंज की राजनीती के दो मुख्य आधार हैं। पहले वैद्यजी परोक्ष रूप से छंगामल इंटर कॉलेज तथा सहकारी समिति चलाते हैं। वह गांव की राजनीति के सूत्रधार हैं, इस बार ग्राम प्रधान का पद भी वैद्यजी के खेमे में आ गया हैं| वैद्यजी के दो बेटे थे – बद्री पहलवान जो अखाड़े में पहलवानी करता था और दूसरा रुप्पन बाबू जो कॉलेज में राजनीति और गुंडागर्दी करता था। दूसरा आधार हैं रामाधीन जिसका आस पास के सारे अवैध धंधो पर एकाधिकार हैं । ये सभी पात्र शिवपालगंज के रहने वाले हैं।
शहर का पढ़ा-लिखा एक नौजवान युवक जब अपने आर्दशवादी सिद्धांत लेकर गांव पहुंचता है तो उसे हर संस्था भ्रष्ट नजर आती है। चाहे वह पुलिस हो, न्यायालय हो, सरकारी विद्यालय निरीक्षक या कॉलेज का प्रबंध हो। वह चाहता हैं की इस मूल्यविहीन, सिद्धांतविहीन व्यवस्था को कैसे ठीक किया जाये और इसी को ठीक करने के लिए वह प्रयासरत रहता हैं|
वह देखता है की न्याय के खिलाफ लड़ने वाले कमजोर हो रहे हैं और उन लोगो की परेशानी कोई सुनने वाला नहीं हैं | और अन्याय करने वाले लोग ऊपर से आदर्शवाद का दिखावा कर रहे हैं |
उन्होंने उत्पीड़ितों के लिए बोलने का प्रयास किया और उनसे बेईमानी के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का आग्रह किया। इतना सब करने के बाद भी जब उनके प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकला तो उन्होंने हार मान ली और गॉव छोड़ने का फैसला किया। तभी कहानी के दूसरे पात्र ने उससे पूछा, “कहाँ जा रहे हो?” हर जगह भ्रष्टाचार और बेईमानी व्याप्त है ।उन्होंने यह विचार भी दिया कि छोटा हो या बड़ा सभी प्रकार का शासन इसी तरह काम करता हैं। इस पुस्तक का मूल सिद्धांत यह है कि सामाजिक सच्चाई का सामना होने पर सिद्धांतवाद अक्सर हार मान लेता है।
आप “राग दरबारी” पुस्तक से बहुत कुछ सीखेंगे इस बात के गारंटी नहीं हैं , लेकिन आप और उन सामाजिक चिंताओं की गहरी समझ विकसित जरूर कर लेंगे जो इसके प्रकाशन के पचास वर्षों से भी अधिक समय बाद भी कायम हैं। इस उपन्यास में आप काल्पनिक पात्रों को उतनी ही सटीकता से जान सकते हैं, जितना श्रीलाल शुक्ल ने गांवों का असली चरित्र दिखाया है।